बिहार चुनाव 2025: बीजेपी का घुसपैठ मुद्दा

बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही, बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) ने सीमांचल इलाके पर ध्यान केंद्रित किया है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री, दोनों ने घुसपैठ के मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाया है, खासकर रोहतास, बेगूसराय और पूर्णिया में हुई रैलियों में।

इस मुद्दे को और हवा तब मिली जब सीमांचल के आधार कार्ड के आंकड़े सामने आए। किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया में 100% से ज़्यादा आधार कार्ड होने की रिपोर्ट आई, जिससे दस्तावेज़ों में गड़बड़ी और पहचान से जुड़ी राजनीति पर सवाल उठने लगे।

विपक्ष का कहना है कि बीजेपी मतदाता सूची में विशेष संशोधन (SIR) के नाम पर लोगों को वोट देने से रोकना चाहती है। वहीं, बीजेपी का कहना है कि वह फर्जी वोटरों को हटाकर सुरक्षा को सुनिश्चित कर रही है। बिहार में चुनावी माहौल गरमा रहा है और यह मुद्दा समाज और राजनीति को और भी बांट सकता है।

पृष्ठभूमि

बिहार विधानसभा के चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने हैं। सभी 243 सीटों पर मुकाबला होगा, इसलिए गठबंधन और चुनावी मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। बीजेपी के जेपी नड्डा और जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बैठकें दिखाती हैं कि दोनों पार्टियां साथ मिलकर काम कर रही हैं, हालांकि सीट बंटवारे पर बातचीत अभी बाकी है। दूसरी तरफ, इंडिया ब्लॉक में आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) और कांग्रेस के बीच भी तालमेल की बात चल रही है। CPI(ML) (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन) के दीपांकर भट्टाचार्य जैसे नेताओं ने सलाह दी है कि विपक्षी पार्टियों को ज़मीनी हकीकत को ध्यान में रखकर रणनीति बनानी चाहिए।

अभी क्या हो रहा है

गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में कार्यकर्ताओं से कहा कि अगर विपक्षी गठबंधन सत्ता में आया तो बिहार घुसपैठियों से भर जाएगा। उन्होंने राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोप को घुसपैठियों को बचाने की कोशिश बताया। प्रधानमंत्री ने पूर्णिया में कहा कि घुसपैठ से जनसंख्या का संतुलन बिगड़ रहा है और महिलाओं की सुरक्षा खतरे में है। उन्होंने हर घुसपैठिए को बाहर निकालने का वादा किया।

इस बीच, चुनाव आयोग ने बिहार में SIR प्रक्रिया शुरू की है, जिसके तहत 65 लाख लोगों के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं। विपक्ष का कहना है कि इससे लाखों लोग वोट नहीं डाल पाएंगे, जबकि सरकार का कहना है कि यह पारदर्शिता लाने की प्रक्रिया है। सीमांचल में 100% से ज़्यादा आधार कार्ड होने के दावे और अचानक डोमिसाइल (निवास प्रमाण पत्र) के लिए आवेदनों में वृद्धि ने प्रशासन, सुरक्षा और मतदाता पहचान को लेकर नए विवाद खड़े कर दिए हैं। कुछ फैक्ट-चेक करने वालों ने बताया है कि दिल्ली जैसे शहरों में भी आधार कार्ड का सैचुरेशन 150% तक है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण माना जा सकता है। साथ ही, यह भी ज़रूरी है कि ओवर-सैचुरेशन के दूसरे कारणों की भी जांच की जाए।

विश्लेषण

बीजेपी का घुसपैठ का मुद्दा सीमांचल और आसपास के इलाकों में सुरक्षा और वोट देने के अधिकार के बीच बहस को और तेज़ कर सकता है। इससे समाज में ध्रुवीकरण बढ़ सकता है और पार्टी अपने समर्थकों को एकजुट कर सकती है। विपक्ष इसे ध्यान भटकाने की कोशिश बताएगा और रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और शासन जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करेगा। साथ ही, वह SIR के ज़रिए कथित वंचना को सामाजिक न्याय के मुद्दे से जोड़कर पलटवार करेगा। यह मुद्दा सीट बंटवारे और मैसेजिंग पर भी असर डाल सकता है। एनडीए के भीतर एकजुटता दिखाना और समय से पहले उम्मीदवारों की घोषणा करना दिखाता है कि पार्टी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके चुनाव में आगे बढ़ना चाहती है।

जातीय और सामाजिक समीकरण

सीमांचल में मुस्लिम आबादी और प्रवासी लोगों की मौजूदगी के कारण घुसपैठ के मुद्दे का सीधा राजनीतिक मतलब है। लेकिन, विपक्ष के लिए यह मुद्दा लोगों को एकजुट करने का मौका भी दे सकता है। अगर विपक्ष SIR से वंचित लोगों के मुद्दे और रोजगार-स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को स्थानीय स्तर पर उठाता है, तो सामाजिक गठबंधनों में नई ऊर्जा आ सकती है, खासकर उन जिलों में जहां आधार कार्ड के आंकड़ों ने चिंता बढ़ा दी है। सरकार के लिए चुनौती यह होगी कि वह सुरक्षा के संदेश को स्थानीय विकास और कल्याणकारी योजनाओं के साथ जोड़े, ताकि लोगों को लगे कि सरकार उनकी भलाई के लिए काम कर रही है और वह सिर्फ राजनीति नहीं कर रही है।

जनता पर असर

प्रधानमंत्री के भाषणों में महिलाओं की सुरक्षा का ज़िक्र होने से यह मुद्दा सीधे तौर पर घरेलू सुरक्षा, नौकरी और बुनियादी सेवाओं जैसे मुद्दों से जुड़ जाता है, जिसका असर युवाओं और महिलाओं के फैसलों पर पड़ सकता है। दूसरी तरफ, अगर SIR और दस्तावेज़ों की जांच की प्रक्रिया पारदर्शी और आसान नहीं रही, तो गरीब और पिछड़े वर्गों के लोगों को मतदाता सूची और डोमिसाइल जैसे दस्तावेज़ों को लेकर असुरक्षा और परेशानी हो सकती है। सीमांचल में डोमिसाइल के आवेदनों में उछाल और आधार कार्ड के विवाद से पता चलता है कि बुनियादी सेवाओं और पहचान को लेकर लोगों में तनाव बढ़ रहा है, जिसे सरकार को जल्द से जल्द सुलझाना होगा।

विशेषज्ञों की राय

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सीमांचल के अनुभवी पत्रकार प्रमोद कुमार का कहना है कि एक व्यक्ति, एक आधार के नियम के बावजूद 100% से ज़्यादा सैचुरेशन राजनीतिक और प्रशासनिक सवाल खड़े करता है, और सीमांचल की भौगोलिक स्थिति इसे और भी संवेदनशील बना देती है। वहीं, CPI(ML) के दीपांकर भट्टाचार्य ने विपक्षी पार्टियों को सीट बंटवारे में व्यावहारिक रुख अपनाने की सलाह दी है। इससे पता चलता है कि मुद्दों पर लड़ाई के साथ-साथ संगठनात्मक तालमेल भी ज़रूरी है। इन सभी बातों का मतलब यही है कि राजनीतिक पार्टियों को मुद्दों के साथ-साथ आंकड़ों और प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता पर भी ध्यान देना चाहिए।

निष्कर्ष

बिहार में घुसपैठ और वोट देने से वंचित करने का मुद्दा चुनावी माहौल को गरमा रहा है। बीजेपी इसे सुरक्षा और फर्जी वोटरों को हटाने से जोड़ रही है, जबकि विपक्ष इसे ध्यान भटकाने की कोशिश बता रहा है और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को उठा रहा है। सीमांचल में आधार कार्ड और डोमिसाइल के आवेदनों ने इस विवाद को डेटा के इस्तेमाल और सरकार के कामकाज की परीक्षा बना दिया है। आने वाले हफ्तों में यह देखना होगा कि कौन सी पार्टी अपने मुद्दों को जनता का विश्वास जीतने और संगठनात्मक तालमेल बनाने में सफल होती है।

Raviopedia

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