पिछले कुछ सालों में भारत में जो भ्रष्टाचार और सरकारी काम में ढिलाई बढ़ी है, उससे सरकारी पैसे का गलत इस्तेमाल हुआ है। बिहार में अभी हाल ही में ₹70,000 करोड़ से ज़्यादा के घोटाले की बात सामने आई है। इससे पता चलता है कि किस तरह घपले और सिस्टम की कमज़ोरियों ने तरक्की और सरकार को अंदर से खोखला कर दिया है।
भ्रष्टाचार और सरकारी काम में ढिलाई
भारत में भ्रष्टाचार और सरकारी काम में ढिलाई हमेशा से एक बड़ी परेशानी रही है। आज़ादी के बाद से ही अलग-अलग सरकारों के समय में पारदर्शिता की कमी, कागज़ों में मिलीभगत और जवाबदेही की कमी की वजह से सरकारी पैसे का गलत इस्तेमाल होता रहा है। बिहार जैसे राज्यों में, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हैं, ये दिक्कत और भी ज़्यादा बढ़ गई है।
पहले लगता था कि भ्रष्टाचार सिर्फ़ कुछ ही जगहों तक सीमित है, लेकिन अब ये साफ हो गया है कि इसने सिस्टम के हर हिस्से को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। सरकारी कर्मचारियों से लेकर नेताओं तक, हर कोई इसमें शामिल है। इस वजह से लोगों को उनके अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं और तरक्की के काम में रुकावट आ रही है।
बिहार में घोटाले और पैसे का गलत इस्तेमाल
- 2023-24 के लिए भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट आई है। इसमें पता चला है कि बिहार सरकार के वित्त विभाग में कितनी लापरवाही और घोटाले हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, ₹70,877.61 करोड़ के 49,649 उपयोग प्रमाणपत्र (UC) जमा नहीं किए गए हैं। इसका मतलब है कि ये पता नहीं चल पाया है कि ये पैसा सही तरीके से इस्तेमाल हुआ है या नहीं।
- ये पैसा ज़्यादातर पंचायती राज विभाग (₹28,154.10 करोड़), शिक्षा विभाग (₹12,623.67 करोड़), शहरी विकास एवं आवास विभाग (₹11,065.50 करोड़), ग्रामीण विकास विभाग (₹7,800.48 करोड़) और कृषि विभाग (₹2,107.63 करोड़) जैसे बड़े विभागों में खर्च हुआ था।
- इतने सारे पैसे के उपयोग प्रमाणपत्र न होने से ये शक होता है कि कहीं कुछ गड़बड़ हुई है, पैसा चुराया गया है या गलत तरीके से बांटा गया है। इसके अलावा, विभागों ने ₹9,205.76 करोड़ के जो बिल दिए हैं, उनका भी कोई हिसाब-किताब नहीं है। इससे पता चलता है कि वित्तीय व्यवस्था में कितनी गड़बड़ी है।
- इतना ही नहीं, स्थानीय निकायों को जो ₹6,499.05 करोड़ दिए गए थे, उनका भी सही इस्तेमाल नहीं हुआ।
भ्रष्टाचार: अलग-अलग लोगों की राय
- सरकार का कहना है कि ये पैसा विकास के कामों में लग रहा है और रिपोर्ट में जो कमियाँ बताई गई हैं, उन्हें ठीक किया जा रहा है। सरकार का ये भी कहना है कि चुनाव नज़दीक हैं, इसलिए विपक्षी पार्टियाँ ऐसी रिपोर्टों का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए कर रही हैं।
- विपक्ष का आरोप है कि ये ₹70,000 करोड़ का घोटाला नीतीश सरकार और केंद्र सरकार की मिलीभगत से हुआ है। विपक्ष का ये भी कहना है कि प्रशासनिक लापरवाही के नाम पर भू-माफिया, अधिकारी और नेता मिलकर गरीब लोगों को धोखा दे रहे हैं।
- विशेषज्ञों का मानना है कि भ्रष्टाचार और सरकारी काम में ढिलाई को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता। सिस्टम में कमज़ोरी, जवाबदेही की कमी और भ्रष्ट लोगों की वजह से ही इतने बड़े घोटाले होते हैं। विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि बिहार जैसे राज्यों में सरकारी विभागों को ठीक से चलाने के लिए कड़ी निगरानी और पारदर्शिता ज़रूरी है।
- स्थानीय लोगों का कहना है कि ज़मीन से जुड़े विकास के कामों में अक्सर अधिकारियों की मिलीभगत से पैसे का गबन होता है, जिससे आम लोगों को कोई फायदा नहीं होता। एक ग्रामीण ने कहा, हमारे गाँव में स्कूल के लिए पैसे आए थे, लेकिन आज तक न तो स्कूल बना और न ही कोई शिक्षक आया। सब कहते हैं कि पैसा कहीं और चला गया।
बिहार: दूसरे राज्यों और दुनिया के देशों से तुलना
अगर इतिहास की बात करें तो एक समय था जब बिहार भ्रष्टाचार के मामले में सबसे खराब राज्यों में गिना जाता था। लेकिन पिछले कुछ सालों में यहाँ कुछ सुधार हुआ है। अभी भी राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भ्रष्टाचार के मामले ज़्यादा हैं, जबकि केरल और हिमाचल प्रदेश में स्थिति बेहतर है।
दुनिया के दूसरे देशों की बात करें तो दक्षिण अफ्रीका जैसे देश भी भ्रष्टाचार के जाल में फंसे हुए हैं। वहाँ नेता, अधिकारी और प्राइवेट कंपनियाँ मिलकर सरकारी पैसे का गलत इस्तेमाल करते हैं। यहाँ स्वास्थ्य और कानूनी क्षेत्रों में भी गड़बड़ियाँ पाई गई हैं, जो भारत के कुछ राज्यों जैसी ही है।
सरकारी परेशानियाँ और नीतियाँ
बिहार में वित्तीय अनुशासन की कमी, अंदरूनी नियंत्रण का अभाव और जवाबदेही के सिस्टम की कमजोरी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। CAG की रिपोर्ट के मुताबिक, अकाउंटिंग के नियमों का उल्लंघन और वित्तीय दस्तावेजों में गड़बड़ियाँ ये दिखाती हैं कि सिस्टम में कितनी बड़ी कमियाँ हैं।
इसके अलावा, भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में देरी और जवाबदेही तय न होने की वजह से भ्रष्टाचार की घटनाएँ लगातार हो रही हैं। सरकारी योजनाओं को सही तरीके से लागू न कर पाना बिहार की एक बड़ी दिक्कत है।
सीख
भ्रष्टाचार और सरकारी काम में ढिलाई ने बिहार की तरक्की को रोक दिया है। ये सिर्फ़ राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक संकट है, जो करोड़ों गरीबों के भविष्य को खतरे में डालता है।
अभी तक जो रिपोर्टें आई हैं और जो मामले सामने आए हैं, उनसे ये साफ हो गया है कि बिना पारदर्शिता, कड़ी निगरानी और लोगों की भागीदारी के भ्रष्टाचार को रोकना नामुमकिन है।
ये लेख आम लोगों, अधिकारियों और नेताओं के लिए एक संदेश है कि वे अपनी जिम्मेदारी समझें, गलत कामों को उजागर करें और एक जवाबदेह सरकार के लिए लड़ें। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई सिर्फ़ सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है।
पाठकों के लिए सवाल
- बिहार जैसे राज्यों में पैसे के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है?
- क्या सरकारी जाँच एजेंसियाँ भ्रष्टाचार को कम करने में कारगर हैं या उन पर नेताओं का दबाव रहता है?
- आम लोग भ्रष्टाचार और सरकारी काम में ढिलाई के खिलाफ कैसे आवाज़ उठा सकते हैं?
- क्या डिजिटल निगरानी और ट्रैकिंग सिस्टम जैसी तकनीकों से इस समस्या को हल करने में मदद मिलेगी?
