बिहार चुनाव: CPI(M) को महागठबंधन की जोरदार जीत का भरोसा, सीट बंटवारे पर मंथन तेज

बिहार में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव को लेकर CPI(M) का मानना है कि महागठबंधन आसानी से जीत सकता है। पार्टी का कहना है कि उन्हें अलग-अलग समुदायों का साथ मिल रहा है, वे स्थानीय मुद्दों पर बात कर रहे हैं, और विपक्षी पार्टियां एकजुट हैं, जिससे उन्हें फायदा होगा। इस बीच, सीटों के बंटवारे को लेकर सहयोगी दलों के बीच बातचीत चल रही है, और जल्द ही अगली बैठकें होने वाली हैं।

क्या है मामला?

बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले, विपक्षी महागठबंधन में RJD, कांग्रेस, और वाम दल (CPI(M), CPI, CPI(ML)) शामिल हैं। ये सभी पार्टियां मिलकर अपनी रणनीति बनाने में लगी हैं।

2020 के विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर हुई थी, और उसके बाद राज्य की राजनीति में कई बार गठबंधन बदले। इस बार विपक्ष चाहता है कि सीटों का बंटवारा साफ हो और वे मिलकर चुनाव प्रचार करें।

पिछले कुछ सालों में महंगाई, नौकरी, खेती और स्थानीय विकास जैसे मुद्दे चर्चा में रहे हैं, और विपक्ष इन्हीं मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है। CPI(M) का मानना है कि अगर सही समय पर और मिलकर उम्मीदवार चुने गए, तो विपक्ष चुनाव में आगे बढ़ सकता है।

CPI(M) का क्या कहना है?

CPI(M) के बड़े नेताओं का कहना है कि अगर विपक्षी वोट एक साथ आते हैं, बूथ स्तर पर तालमेल होता है, और एक साझा घोषणापत्र जारी किया जाता है, तो महागठबंधन को बहुत समर्थन मिल सकता है।

गठबंधन के सूत्रों के अनुसार, सीटों के बंटवारे पर लगभग सहमति बन गई है। इसमें इलाके में किसकी पकड़ है, पिछले चुनाव में कैसा प्रदर्शन रहा, और समाज में किसका प्रतिनिधित्व है, इन बातों को ध्यान में रखा जाएगा।

RJD और कांग्रेस से जुड़े लोगों का कहना है कि जिन सीटों पर मुकाबला कड़ा है, वहां उम्मीदवारों का चुनाव उनकी जीतने की क्षमता और स्थानीय समीकरणों को देखकर किया जाएगा।
वाम दलों का कहना है कि जहां उनका संगठन मजबूत है, जैसे ग्रामीण इलाके और मजदूरों वाले क्षेत्र, वहां उन्हें ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए।

लोगों की क्या राय है?

सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने CPI(M) के दावे को सिर्फ चुनावी बातें बताकर खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि लोग विकास, कानून व्यवस्था और सरकार की योजनाओं पर भरोसा करते हैं, इसलिए वे उनके साथ हैं।

कुछ सामाजिक संगठनों का मानना है कि अगर विपक्ष उम्मीदवारों के चुनाव में ईमानदारी दिखाता है और समय पर फैसला लेता है, तो मुकाबला दिलचस्प होगा।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि शहरों में रहने वाले वोटर, पहली बार वोट डालने वाले युवा और महिलाएं चुनाव के नतीजों पर असर डाल सकते हैं।

विश्लेषण

चुनावी समीकरण: बिहार की राजनीति में OBC, EBC, महादलित और अल्पसंख्यक वोट बैंक का बहुत असर होता है। महागठबंधन इन समुदायों के साथ खेत मजदूरों, ठेका कर्मचारियों और बाहर रहने वाले परिवारों के मुद्दों को उठा रहा है।

इलाके का मिजाज: सीमांचल, मगध, मिथिलांचल और कोसी जैसे इलाकों में स्थानीय मुद्दे (जैसे बाढ़, सड़क, पुल, शिक्षा, स्वास्थ्य और खेती से जुड़े रोजगार) पर प्रचार करके विपक्ष आगे बढ़ सकता है, लेकिन इसके लिए उम्मीदवारों का चुनाव सोच-समझकर करना होगा।

सीट बंटवारे में ध्यान रखने वाली बातें:

  • पिछले चुनाव में किसका कैसा प्रदर्शन रहा और कितने वोट मिले
  • बूथ पर मैनेजमेंट कैसा है और संगठन कितना मजबूत है
  • जाति और समाज में किसका प्रतिनिधित्व है और लोग किसे पसंद करते हैं
  • कौन सी पार्टी किस इलाके में मजबूत है

खतरे और मौके: अगर समय पर सीटों का बंटवारा नहीं हुआ, तो नाराजगी और बगावत हो सकती है, जिससे कुछ सीटों पर नुकसान हो सकता है। वहीं दूसरी ओर, अगर पार्टियां मिलकर रैलियां करती हैं, एक साझा घोषणापत्र जारी करती हैं और रोजगार, किसान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर साफ संदेश देती हैं, तो विपक्ष के लिए मौके बन सकते हैं।

निष्कर्ष

CPI(M) का मानना है कि विपक्ष के लिए यह अच्छी खबर है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती सीटों के बंटवारे पर समय पर सहमति बनाना और उम्मीदवारों का सही चुनाव करना है। अगर आने वाले हफ्तों में बैठकें होती हैं और पार्टियां मिलकर कार्यक्रम करती हैं, तो विपक्ष चुनाव में अच्छी स्थिति में आ सकता है।

Raviopedia

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