भागलपुर भूमि पट्टा विवाद पर कांग्रेस का प्रदर्शन, पर्यावरण बहस तेज

बिहार सरकार द्वारा भागलपुर में 1,050 एकड़ जमीन को Adani Group को मामूली किराये पर देने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने सोमवार को राज्यभर में प्रदर्शन किया। कांग्रेस का आरोप है कि जमीन कृषि योग्य है, जिसे ‘बंजर’ घोषित कर पट्टे पर दिया जा रहा है। पार्टी ने कथित पेड़ों की कटाई और संभावित पर्यावरणीय नुकसान पर आपत्ति जताते हुए निर्णय वापस लेने और पारदर्शी जांच की मांग उठाई। सरकार का कहना है कि औद्योगिक निवेश और रोजगार सृजन के लिए प्रक्रिया नियमों के अनुरूप है।

पृष्ठभूमि

भागलपुर की यह भूमि राज्य के औद्योगिक विकास एजेंडा के तहत लीज पर देने के प्रस्ताव से जुड़ी बताई जा रही है। विपक्ष का कहना है कि ऐसे निर्णयों में भूमि श्रेणीकरण, पर्यावरणीय मंजूरियां और जन-सुनवाई जैसी प्रक्रियाओं की पूर्ण पारदर्शिता जरूरी है। राज्य में इससे पहले भी औद्योगिक परियोजनाओं के लिए भूमि आवंटन पर राजनीति गरमाती रही है, जहां विकास बनाम पर्यावरण और किसान हितों का सवाल केंद्र में रहा है। पूर्ववर्ती मामलों में भी भूमि की श्रेणी (कृषि/बंजर/सरकारी) और भू-उपयोग परिवर्तन को लेकर आपत्तियां उठती रही हैं।

बयान

कांग्रेस ने कहा कि 1,050 एकड़ क्षेत्र में उपजाऊ मिट्टी और मौजूदा कृषि गतिविधियां हैं, जिन्हें ‘बंजर’ घोषित करना तथ्यों से मेल नहीं खाता। पार्टी ने स्वतंत्र भू-अभिलेख सत्यापन, सैटेलाइट इमेजरी विश्लेषण और ग्राम-स्तरीय सर्वे की मांग की।पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चेताया कि बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई, भू-आर्द्रता में परिवर्तन और स्थानीय जैव-विविधता पर असर की संभावना की वैज्ञानिक जांच जरूरी है। उन्होंने पूर्ण पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) और सार्वजनिक परामर्श की मांग दोहराई।

राज्य सरकार की ओर से संकेत दिया गया कि औद्योगिक निवेश से क्षेत्र में रोजगार, बुनियादी ढांचा और सप्लाई चेन विकसित होंगे। सरकार का दावा है कि भूमि का श्रेणीकरण राजस्व अभिलेखों के आधार पर किया गया है और आवश्यक मंजूरियों का पालन होगा।

कंपनी पक्ष ने सामान्य रूप से यह रुख रखा है कि सभी वैधानिक प्रक्रियाओं का अनुपालन किया जाएगा, पर्यावरण मानकों का ध्यान रखा जाएगा और क्षतिपूरक वृक्षारोपण व स्थानीय समुदायों के लिए CSR गतिविधियां सुनिश्चित की जाएंगी।

प्रतिक्रियाएँ

महागठबंधन के दलों ने कांग्रेस के विरोध का समर्थन करते हुए इसे “भूमि और पर्यावरण” का मुद्दा बताया और संयुक्त जांच समिति बनाने की मांग की।

सत्तापक्ष के नेताओं ने विपक्ष पर “विकास विरोधी राजनीति” का आरोप लगाया और कहा कि निवेश आने से पूर्वी बिहार में उद्योग-सृजन और युवा रोजगार को बल मिलेगा।

किसान संगठनों और स्थानीय नागरिक समूहों से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आईं—कुछ ने भूमि की श्रेणी और मुआवजा/पुनर्वास पर स्पष्टता मांगी, तो कुछ ने औद्योगिक परियोजनाओं से संभावित बाजार और रोज़गार अवसरों का स्वागत किया।

सोशल मीडिया पर #BhagalpurLandRow और #EnvironmentFirst जैसे हैशटैग पर बहस तेज रही, जहां उपयोगकर्ताओं ने दस्तावेज़, पुराने उपग्रह चित्र और क्षेत्रीय तस्वीरें साझा कर दावे-प्रति-दावे किए।

विश्लेषण

यह विवाद बिहार की राजनीति में “विकास बनाम पर्यावरण” के नैरेटिव को फिर सक्रिय करता है। पूर्वी बिहार सहित ग्रामीण पट्टी में भूमि, जल और हरियाली से जुड़े प्रश्न चुनावी विमर्श को प्रभावित करते हैं, खासकर किसान, मछुआरे और खेतिहर मज़दूर तबकों के बीच। दूसरी ओर, शहरी व अर्ध-शहरी युवाओं में उद्योग और नौकरियों का सवाल समानांतर रूप से प्रभावशाली है।
जातिगत समीकरणों की दृष्टि से, भूमि और आजीविका से जुड़े मुद्दे ओबीसी, ईबीसी और महादलित समुदायों की राजनीतिक प्राथमिकताओं पर असर डाल सकते हैं। विपक्ष यदि इसे पारदर्शिता, जन-सुनवाई और पर्यावरणीय अनुपालन के फ्रेम में रखता है, तो वह ग्रामीण मतदाताओं के बीच मुद्दे को पकड़ सकता है। सत्तापक्ष निवेश, आधारभूत ढांचे और रोजगार-सृजन के ठोस रोडमैप और समयबद्ध लक्ष्य दिखाकर अपने पक्ष को मजबूत कर सकता है।
आगामी चुनावी मौसम में यह मामला स्थानीय स्तर पर सीट-वार समीकरणों को प्रभावित कर सकता है—जहां भूमि अधिग्रहण का इतिहास, परियोजना से सीधे प्रभावित पंचायतें और मुआवजा/पुनर्वास की विश्वसनीयता निर्णायक ठहरेगी। पारदर्शी EIA, जन-परामर्श और दस्तावेज़ों का सार्वजनिक प्रकटीकरण राजनीतिक जोखिम को कम करने के व्यावहारिक उपाय हो सकते हैं।

निष्कर्ष

भागलपुर भूमि पट्टा विवाद ने बिहार में भूगोल-पर्यावरण और विकास की बहस को नए सिरे से केंद्र में ला दिया है। आगे की दिशा सरकार द्वारा प्रक्रियागत पारदर्शिता, जन-संवाद और स्वतंत्र जांच/सत्यापन के कदमों और विपक्ष की रणनीति पर निर्भर करेगी।

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