निर्वाचन आयोग (ECI) की पूरी बेंच अगले हफ्ते बिहार आने की संभावना है, जहां चुनावी तैयारियों का व्यापक आकलन किया जाएगा। आयोग राज्य प्रशासन, पुलिस और निर्वाचन तंत्र से अलग-अलग बैठकों में सुरक्षा, मतदाता सूची, EVM-VVPAT और आचार संहिता अनुपालन की स्थिति पर रिपोर्ट लेगा। दौरे के दौरान संवेदनशील बूथों की चिन्हांकन, बल तैनाती और दिव्यांग व प्रथम बार मतदाताओं के लिए व्यवस्था भी फोकस में रहेगी।
पृष्ठभूमि
बड़े चुनावों से पहले ECI का फुल बेंच दौरा राज्य की तैयारियों की समग्र समीक्षा के लिए नियमित प्रक्रिया है। ऐसे दौरों में आयोग चुनावी ढांचे की अंतिम-स्तर की कमियों की पहचान करता है और समयबद्ध सुधार के निर्देश देता है। बिहार जैसे बड़े और सामाजिक रूप से विविध राज्य में लॉजिस्टिक्स, कानून-व्यवस्था, दूरी और संवेदनशील इलाकों की वजह से खास समन्वय की आवश्यकता होती है। पिछली बारों की तरह इस बार भी बूथ स्तर से लेकर जिला और राज्य स्तर तक समन्वय पर जोर रहने की उम्मीद है।
बयान
आयोग की प्राथमिकताओं में आमतौर पर निम्न बिंदु शामिल रहते हैं: मतदाता सूची का अंतिम विशेष संक्षिप्तीकरण, डुप्लीकेशन और गुमशुदा नाम की शिकायतों का निस्तारण, PwD मतदाताओं के लिए रैंप, व्हीलचेयर और परिवहन की व्यवस्था, महिलाओं के लिए पिंक बूथ और मॉडल बूथ का विस्तार, EVM-VVPAT की प्रथम-स्तर जांच (FLC), भंडारण की त्रि-स्तरीय सुरक्षा और स्ट्रॉन्गरूम की निगरानी।
राज्य प्रशासन की ओर से कानून-व्यवस्था, सशस्त्र बलों की मांग, इंटर-स्टेट समन्वय और संवेदनशील/अतिसंवेदनशील बूथों की मैपिंग पर प्रस्तुति दी जाने की संभावना है।
चुनाव प्रबंधन विशेषज्ञों का मानना है कि फुल बेंच विजिट से जिला स्तर पर क्रिटिकल गैप्स—जैसे कर्मियों की उपलब्धता, वाहन/लॉजिस्टिक सपोर्ट, संचार नेटवर्क और रीयल-टाइम मॉनिटरिंग—की तेजी से पहचान और पूर्ति होती है।
प्रतिक्रिया
सत्तापक्ष का रुख: आमतौर पर सरकारें ऐसे दौरों को “निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव की तैयारी” के लिए सकारात्मक मानती हैं और प्रशासनिक व्यवस्था के प्रति भरोसा जताती हैं।
विपक्ष का रुख: विपक्ष प्रायः EVM-VVPAT के सुरक्षित रख-रखाव, संवेदनशील बूथों पर केंद्रीय बल की पर्याप्त तैनाती, आचार संहिता के कड़ाई से पालन और प्रशासनिक निष्पक्षता पर जोर देता है।नागरिक समाज/मतदाता समूह: युवा और प्रथम बार मतदाताओं के रजिस्ट्रेशन, प्रवासी मतदाताओं के लिए सूचना पहुंच, और दिव्यांगजन की सुगम्यता को प्राथमिकता देने की मांग बढ़ती दिखती है।
विश्लेषण
ECI बेंच का बिहार दौरा राजनीतिक दलों के लिए वास्तविक “डे-ऑफ-रेकनिंग” साबित हो सकता है। आयोग की समय-सीमा तय होते ही सीट-बंटवारे, उम्मीदवार चयन और बूथ-मैनेजमेंट की आंतरिक समय-सारिणी तेज होती है। जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों के लिहाज से आयोग के दिशानिर्देश सीधे तौर पर रैलियों, रोड शो, प्रचार खर्च और सोशल मीडिया संचार के स्वरूप को प्रभावित करते हैं। आचार संहिता लागू होने के बाद सरकारी उद्घाटनों, तबादलों और विज्ञापन पर लगाम से सत्तापक्ष की रणनीति सीमित होती है, जबकि विपक्ष मुद्दा-आधारित अभियान पर ज्यादा ध्यान देता है। सुरक्षा और CAPF तैनाती का विस्तृत ब्लूप्रिंट सीमावर्ती और संवेदनशील जिलों में मतदान प्रतिशत तथा मतदाताओं के विश्वास को प्रभावित कर सकता है। कुल मिलाकर, यह दौरा चुनावी मशीनरी की तत्परता की ‘लास्ट-माइल’ जांच के साथ-साथ दलों की माइक्रो-प्लानिंग की रफ्तार बढ़ाएगा।
निष्कर्ष
ECI की पूरी बेंच का संभावित बिहार दौरा चुनावी तैयारियों की अंतिम समीक्षा का संकेत है। अगले चरण में आयोग जिलों-वार निर्देश जारी कर सकता है और संवेदनशील इलाकों के लिए विशेष प्रोटोकॉल लागू किए जाने की उम्मीद है।

