चंडीगढ़ शहर के प्रशासन ने फैसला किया है कि वो पैरा-एथलीटों (दिव्यांग खिलाड़ियों) के लिए एक खास योजना शुरू करेंगे। इस योजना में खिलाड़ियों को कोच दिए जाएंगे, उनके लिए खेलने की अच्छी जगह बनाई जाएगी और उन्हें प्रतियोगिताओं में भाग लेने का मौका भी मिलेगा। इससे जो खिलाड़ी विकलांग हैं, उन्हें शुरुआत से लेकर ऊँचाई तक पहुँचने में मदद मिलेगी।
क्यों ज़रूरी है ये योजना?
चंडीगढ़ प्रशासन चाहता है कि जो खिलाड़ी शारीरिक रूप से अक्षम हैं, उनके लिए खेल को और भी बेहतर बनाया जाए। इस नई योजना में खिलाड़ियों को पहचानने, ट्रेनिंग देने, ज़रूरी सामान देने, उन्हें अलग-अलग ग्रुप में बाँटने, प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने, छात्रवृत्ति देने और करियर के बारे में सलाह देने जैसे काम शामिल होंगे।
ये सब सिर्फ़ मेडल जीतने के लिए नहीं है। इसका मकसद ये भी है कि समाज में सबको बराबर का मौका मिले, सब स्वस्थ रहें और मिल-जुलकर रहें। इसके लिए ज़रूरी है कि शिक्षा, खेल और समाज कल्याण विभाग मिलकर काम करें।
क्या-क्या होगा इस योजना में?
प्रशासन ने बताया है कि इस योजना में तीन चीज़ों पर सबसे ज़्यादा ध्यान दिया जाएगा:
- अच्छे कोच: पैरा-खेलों के लिए खास कोच रखे जाएंगे। इन कोचों को ये भी सिखाया जाएगा कि विकलांग लोगों को कैसे ट्रेनिंग देनी है और खेलों के नियमों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी।
- खेलने की अच्छी जगह: स्टेडियम, ट्रैक, स्विमिंग पूल और जिम जैसी जगहों पर व्हीलचेयर के लिए रैंप, छूकर पढ़ने के लिए ब्रेल लिपि में बोर्ड, टॉयलेट में पकड़ने के लिए हैंडल और सुरक्षित फर्श जैसी सुविधाएं होंगी।
- खेलने के मौके: जिले और शहर के स्तर पर ट्रायल होंगे, राज्य की टीम चुनी जाएगी, ट्रेनिंग कैंप लगेंगे और स्कूलों और कॉलेजों के बीच प्रतियोगिताएं होंगी। साथ ही, बड़े इवेंट्स से पहले खास कैंप भी लगाए जाएंगे।
कैसे पहचानेंगे नए खिलाड़ियों को?
इस योजना में सबसे ज़रूरी है कि नए खिलाड़ियों को शुरुआत में ही पहचान लिया जाए। इसके लिए स्कूलों, कॉलेजों और आसपास के इलाकों में हेल्थ और स्पोर्ट्स कैंप लगाए जाएंगे।
- स्कूलों में बच्चों की जाँच की जाएगी, जहाँ शारीरिक, देखने में और दिमाग़ी रूप से कमज़ोर बच्चों के लिए अलग-अलग तरह की गतिविधियाँ होंगी।
- डॉक्टरों और विशेषज्ञों की मदद से खिलाड़ियों को उनके ग्रुप में बाँटा जाएगा, ताकि उन्हें सही तरह से ट्रेनिंग दी जा सके।
- आसपास के सेंटरों में खेल क्लीनिक खोले जाएंगे, ताकि बच्चों के माता-पिता और युवा खेलों के बारे में जान सकें।
- लड़कियों को ज़्यादा मौका देने के लिए खास प्रोग्राम चलाए जाएंगे, उन्हें आने-जाने में मदद की जाएगी और उनके लिए सुरक्षित जगहें बनाई जाएंगी।
इन सब से ये होगा कि खिलाड़ी सिर्फ़ कुछ ही खेलों में नहीं, बल्कि एथलेटिक्स, बैडमिंटन, तैराकी, टेबल टेनिस, शूटिंग और व्हीलचेयर बास्केटबॉल जैसे कई खेलों में आगे बढ़ सकेंगे।
पैसे और सामान की मदद
पैरा-खेलों में ज़रूरी सामान और आने-जाने का खर्चा अक्सर खिलाड़ियों के लिए मुश्किल होता है। इसलिए इस योजना में इस बात का भी ध्यान रखा गया है।
- सामान की मदद: रेसिंग व्हीलचेयर, नकली अंग, देखने में कमज़ोर खिलाड़ियों के लिए गाइड, खास रैकेट और जूते खरीदने के लिए पैसे दिए जाएंगे।
- छात्रवृत्ति: अच्छे खिलाड़ियों को छात्रवृत्ति दी जाएगी, ताकि वो अपनी ट्रेनिंग जारी रख सकें। साथ ही, कैंप और प्रतियोगिताओं के दौरान खाने-पीने का खर्चा भी दिया जाएगा।
- बीमा और स्वास्थ्य: खिलाड़ियों को चोट लगने पर इलाज के लिए बीमा मिलेगा, फिजियोथेरेपी की सुविधा मिलेगी और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए सलाह भी दी जाएगी। उनकी नियमित रूप से जाँच भी होगी।
- पुरस्कार और नौकरी: अच्छा प्रदर्शन करने पर इनाम दिए जाएंगे और खेल कोटे से नौकरी पाने में भी मदद की जाएगी।
इन सब से खिलाड़ियों को आर्थिक रूप से मदद मिलेगी और वो बिना किसी परेशानी के अपने खेल पर ध्यान दे पाएंगे।
कौन करेगा ये सब काम?
इस योजना को ठीक से चलाने के लिए एक टीम बनाई जाएगी, जो सब कुछ देखेगी और समय पर काम पूरा करेगी।
- खेल विभाग: ये विभाग सब कुछ करने की ज़िम्मेदारी लेगा। इसके साथ समाज कल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग भी मिलकर काम करेंगे।
- तकनीकी मदद: स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) और पैरालंपिक कमिटी ऑफ इंडिया (PCI) जैसी संस्थाएं तकनीकी मदद देंगी।
- सलाहकार: खेल के विशेषज्ञ, कोच, डॉक्टर और खिलाड़ी मिलकर सलाह देंगे।
- निगरानी: हर साल जाँच की जाएगी कि सब कुछ ठीक चल रहा है या नहीं, कितने खिलाड़ियों ने भाग लिया, कितने कोच हैं और प्रतियोगिताएं समय पर हो रही हैं या नहीं।
ये सब काम विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act) के हिसाब से होंगे, जिसमें खेलों तक सबकी पहुँच की बात कही गई है।
देश में क्या हो रहा है?
भारत में पैरा-खेलों में लोग अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। टोक्यो पैरालंपिक 2020 में भारत ने 19 मेडल जीते थे। इससे पता चलता है कि अगर सही तरीके से निवेश किया जाए और कोचिंग दी जाए तो अच्छे नतीजे मिल सकते हैं। एशियाई पैरा गेम्स 2022 में भारत ने 100 से ज़्यादा मेडल जीते, जो दिखाता है कि देश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है।
केंद्र और राज्य सरकारें भी 'खेलो इंडिया' जैसी योजनाओं के ज़रिए पैरा-खेलों को बढ़ावा दे रही हैं। चंडीगढ़ की नई योजना भी इसी दिशा में एक कदम है।
विशेषज्ञों का मानना है कि शहरों में अच्छी सड़कें, आसानी से मिलने वाला परिवहन और अच्छे अस्पताल होने से पैरा-एथलीटों को फ़ायदा होता है। अब प्रशासन को ये देखना होगा कि इन सुविधाओं को कैसे जोड़ा जाए और हमेशा पैसे की व्यवस्था कैसे की जाए।
इससे समाज को क्या फ़ायदा होगा?
इस योजना से सिर्फ़ खेल में ही नहीं, बल्कि समाज में भी फ़ायदा होगा।
- सबका साथ: जब सार्वजनिक जगहों पर विकलांग लोगों के लिए सुविधाएं बढ़ेंगी, तो वो कला, शिक्षा, नौकरी और दूसरे कामों में भी हिस्सा ले पाएंगे।
- स्वास्थ्य: खेल से लोगों का शरीर और दिमाग़ स्वस्थ रहेगा, उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वो आज़ादी से जी सकेंगे।
- नौकरी: कोच, फिजियोथेरेपिस्ट, स्पोर्ट्स साइंस, सामान सप्लाई और इवेंट मैनेजमेंट जैसे कामों में नए मौके मिलेंगे।
- शिक्षा: स्कूलों में समावेशी खेल संस्कृति बनेगी, जिससे बच्चे एक-दूसरे को समझेंगे और टीम में काम करना सीखेंगे।
क्या परेशानियाँ आ सकती हैं?
इस योजना को लागू करने में कुछ दिक्कतें आ सकती हैं। इसलिए योजना बनाने वाले इन बातों पर ध्यान दे रहे हैं।
- पैसे की कमी: सिर्फ़ शुरुआत में ही नहीं, बल्कि हमेशा पैसे की ज़रूरत होगी, ताकि कोच, स्वास्थ्य सुविधाएं और इवेंट्स चलते रहें।
- कोच की कमी: पैरा-खेलों के लिए खास कोच मिलना मुश्किल है। इसलिए कोचों को ट्रेनिंग देने का इंतज़ाम करना होगा।
- विशेषज्ञों की कमी: खिलाड़ियों को उनके ग्रुप में बाँटने के लिए डॉक्टरों और विशेषज्ञों की ज़रूरत होगी।
- विभागों में तालमेल: शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज कल्याण और खेल विभागों को मिलकर काम करना होगा।
- आने-जाने की परेशानी: स्टेडियम तक पहुँचने के लिए अच्छी सड़कें और परिवहन की सुविधा होनी चाहिए।
इन परेशानियों से बचने के लिए योजना को धीरे-धीरे लागू किया जाएगा, सब कुछ पारदर्शी रखा जाएगा और खिलाड़ियों से सलाह ली जाएगी।
आगे क्या होगा?
प्रशासन सबसे पहले 6-12 महीनों में ज़रूरी सुधार करेगा, जैसे जगहों को विकलांगों के लिए आसान बनाना और स्कूलों-कॉलेजों में पायलट प्रोग्राम चलाना। साथ ही, कोचों को ट्रेनिंग दी जाएगी और खिलाड़ियों का रजिस्ट्रेशन किया जाएगा।
फिर 12-24 महीनों में ज़्यादा खेलों के लिए सेंटर खोले जाएंगे, नियमित प्रतियोगिताएं होंगी और राष्ट्रीय इवेंट्स में ज़्यादा खिलाड़ी हिस्सा लेंगे। 24-36 महीनों में खिलाड़ियों को ऊँचाई तक पहुँचाने के लिए एक सिस्टम बनाया जाएगा, जिसमें खेल विज्ञान, डेटा-ट्रैकिंग और निजी ट्रेनिंग शामिल होगी।
प्रशासन ने कहा है कि लोगों से राय लेकर और जाँच रिपोर्ट के आधार पर योजना में बदलाव किए जाएंगे, ताकि ये हमेशा सही बनी रहे।
कौन करेगा मदद?
इस योजना को सफल बनाने के लिए सबका साथ ज़रूरी है।
- खिलाड़ी और माता-पिता: रजिस्ट्रेशन कराएं, ट्रायल में हिस्सा लें और अपनी राय दें।
- स्कूल: खेलों के लिए समय निकालें, ज़रूरी सामान दें और स्कूल में इवेंट कराएं।
- अस्पताल: खिलाड़ियों को जाँच, फिजियोथेरेपी और मानसिक स्वास्थ्य की सेवाएं दें।
- समाज और कंपनियां: सामान और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए पैसे दें और इवेंट्स में पार्टनर बनें।
सब कुछ साफ़-साफ़ होगा
- खिलाड़ियों का रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन होगा और उनके प्रदर्शन को ट्रैक किया जाएगा। हर साल प्रोग्रेस रिपोर्ट जारी की जाएगी, ताकि सब कुछ साफ़ रहे। इससे योजना बनाने वालों को पता चलेगा कि कहाँ पैसे लगाने हैं और कहाँ दिक्कतें आ रही हैं।
- अगर प्रशासन शिकायत सुनने के लिए हेल्पलाइन और पोर्टल बनाता है, तो इससे लोगों को परेशानी नहीं होगी और पैरा-एथलीटों का भरोसा बढ़ेगा।
सीख
चंडीगढ़ प्रशासन ने पैरा-एथलीटों के लिए जो योजना शुरू की है, वो एक अच्छा कदम है। इससे विकलांग खिलाड़ियों को बराबर का मौका मिलेगा और वो ऊँचाई तक पहुँच सकेंगे। अब देखना ये है कि प्रशासन इस योजना को समय पर लागू करता है, हमेशा पैसे का इंतज़ाम करता है और सभी विभागों को मिलाकर काम करता है या नहीं। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो चंडीगढ़ न सिर्फ़ मेडल जीतेगा, बल्कि एक ऐसा उदाहरण बनेगा कि शहरों में खेलों को कैसे समावेशी बनाया जा सकता है।



