भारत का ग्लोबल साउथ आउटरिच: विकास साझेदारी

भारत का ग्लोबल साउथ के साथ डेवलपमेंट का तरीका कुछ इस तरह है: हम ITEC (इंडियन टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को ऑपरेशन) प्रोग्राम चलाते हैं, दूसरे देशों को लोन देते हैं, ग्रांट देते हैं और मुश्किल समय में उनकी मदद करते हैं। इससे भारत की एक ऐसी छवि बनी है जो दूसरों की मदद करने में विश्वास रखता है, खासकर ग्लोबल साउथ में। हमने इन देशों में लोगों को काबिल बनाने, सड़कें और बिल्डिंग बनाने और हेल्थकेयर को बेहतर बनाने में मदद की है। हमारा तरीका ये है कि हम उन देशों की ज़रूरतें सुनते हैं जिनके साथ हम काम कर रहे हैं और अपनी मदद को उनकी ज़रूरतों के हिसाब से बनाते हैं। ये सब 2012 में बने डेवलपमेंट पार्टनरशिप एडमिनिस्ट्रेशन (DPA) के कारण हो पाया है, जिसने इस काम को और भी प्रोफेशनल बना दिया है।

ये सब कैसे शुरू हुआ?

भारत हमेशा से ही दूसरे विकासशील देशों की मदद करने में विश्वास रखता था। 1964 में, हमने ITEC प्रोग्राम शुरू किया। हर साल 15 सितंबर को हम ITEC Day मनाते हैं। 2012 में, विदेश मंत्रालय में DPA की स्थापना हुई। ये संस्था दूसरे देशों को लोन देने, ग्रांट देने, ITEC ट्रेनिंग और प्रोजेक्ट पूरे करने जैसे कामों को देखती है।

ITEC: एक नज़र

1964 से, ITEC भारत का एक खास प्रोग्राम रहा है जो दूसरे देशों के लोगों को काबिल बनाने पर ध्यान देता है। हम एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरेबियन, पैसिफिक और पूर्वी यूरोप के लगभग 160 देशों को इस प्रोग्राम में शामिल होने के लिए invite करते हैं। ITEC/SCAAP/Colombo Plan के ज़रिए हम ट्रेनिंग देते हैं, एक्सपर्ट्स भेजते हैं, प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं, स्टडी टूर organize करते हैं और equipment भी डोनेट करते हैं। 2012-13 में, DPA-II के तहत हमने 161 देशों के लोगों के लिए लगभग 8,500 सिविलियन और 1,500 डिफेंस ट्रेनिंग स्लॉट दिए। ये ट्रेनिंग 47 संस्थानों में लगभग 280 कोर्सेज में दी गई। इससे पता चलता है कि ये प्रोग्राम कितना बड़ा है।

पैसे और इंफ्रास्ट्रक्चर की मदद

भारत Exim Bank के ज़रिए दूसरे देशों को Lines of Credit (LOCs) देता है। इन LOCs से मिलने वाले पैसे से एनर्जी, ट्रांसपोर्ट, एग्रीकल्चर, हेल्थ और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे sectors में प्रोजेक्ट चलाए जाते हैं। अफ्रीका में हमने 42 देशों को 200 से ज़्यादा LOCs के ज़रिए लगभग 12 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा की मदद दी है। इससे वहां इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर हुआ है, industries का विकास हुआ है, लोगों को नौकरी मिली है और भारत से एक्सपोर्ट भी बढ़ा है। DPA-III अफगानिस्तान, मालदीव, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में ग्रांट प्रोजेक्ट्स चलाता है। ये भारत की 'पड़ोसी पहले' वाली पॉलिसी के हिसाब से है।

हम किन देशों की मदद करते हैं?

भारत एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और पैसिफिक के छोटे द्वीपीय देशों जैसे ग्लोबल साउथ के कई देशों की मदद करता है। हम ITEC और LOCs दोनों का इस्तेमाल करते हैं। 2023 में, हमने Voice of Global South Summit नाम का एक सम्मेलन किया। इसमें 125 से ज़्यादा देशों ने हिस्सा लिया और हमने मिलकर ये तय किया कि हम डेवलपमेंट के लिए क्या-क्या करेंगे।

मुश्किल वक़्त में मदद

DPA आपदाओं के समय में भी मदद करता है। हम जल्दी से मदद पहुंचाते हैं, सामान भेजते हैं और लोगों को ट्रेनिंग देते हैं। कोविड-19 के दौरान, हमने Vaccine Maitri नाम का एक प्रोग्राम चलाया। इसके तहत हमने 2021 में 94 देशों और 2 संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं को 72.34 मिलियन से ज़्यादा वैक्सीन डोज़ दीं।

भारत को क्या फायदा होता है?

भारत जो भी करता है, वो दूसरे देशों की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर करता है। हम उनकी आज़ादी का सम्मान करते हैं और हमेशा बातचीत से हल निकालने की कोशिश करते हैं। इससे दूसरे देशों के साथ हमारे रिश्ते बेहतर होते हैं। G20 की अध्यक्षता के दौरान, भारत ने ग्लोबल साउथ की आवाज़ को दुनिया के सामने रखा। हमने SDGs के लिए प्लान बनाए और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे solutions पर काम किया।

पैसे का फायदा

LOCs और प्रोजेक्ट्स की वजह से भारतीय कंपनियों को विदेशों में प्रोजेक्ट्स मिलते हैं। इससे एक्सपोर्ट बढ़ता है और हम ग्लोबल वैल्यू चेन में और भी integrate हो पाते हैं। हमने क्षेत्रीय विकास वित्त संस्थानों के साथ एग्रीमेंट किए हैं जिससे पश्चिम अफ्रीका जैसे इलाकों में भारतीय उद्योग की मौजूदगी बढ़ रही है।

कुछ मुश्किलें भी हैं

कई देशों में एक साथ प्रोजेक्ट्स करने में कुछ दिक्कतें आती हैं। जैसे कि प्रोजेक्ट को समय पर पूरा करना, काम करने की क्षमता, स्थानीय नियम और रिस्क शेयर करना। DPA ने इन दिक्कतों को कम किया है, लेकिन ये अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं। हमें पारदर्शिता, रिजल्ट और जांच के तरीकों को और भी बेहतर बनाने की ज़रूरत है।

क्या करना चाहिए?

हमें प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले अच्छी तरह से तैयारी करनी चाहिए। पर्यावरण और समाज की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए और स्थानीय लोगों को भी शामिल करना चाहिए। LOCs का इस्तेमाल करते समय हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि दूसरे देशों पर ज़्यादा कर्ज़ न हो और जो भी शर्तें हों वो पारदर्शी हों। हमें डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, स्किलिंग और हेल्थ सिस्टम को बेहतर बनाने जैसे सॉल्यूशंस पर ध्यान देना चाहिए।

आगे क्या होगा?

Voice of Global South Summit और G20 की डेवलपमेंट से जुड़ी पहलें दिखाती हैं कि भारत आने वाले समय में और भी organized तरीके से काम करेगा। हम डेटा का इस्तेमाल करेंगे और रिजल्ट पर ध्यान देंगे। अफ्रीका, पड़ोसी देशों और हिंद महासागर क्षेत्र में LOCs/ग्रांट्स और ITEC के ज़रिए हम लोगों को काबिल बनाएंगे और हरित ऊर्जा, हेल्थ, कनेक्टिविटी और डिजिटल सॉल्यूशंस पर काम करेंगे।

Raviopedia

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