रूस और चीन की कोशिशों के बाद भी संयुक्त राष्ट्र ने ईरान पर पुराने प्रतिबंध फिर से लगा दिए हैं। हथियारों के आयात-निर्यात और यूरेनियम संवर्धन पर रोक लग गई है। यूरोप के तीन बड़े देशों (E3) की पहल से ये प्रतिबंध लगे हैं, जिससे पश्चिम और ईरान के बीच तनाव और बढ़ सकता है।
मुख्य खबर:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस और चीन ने मिलकर छह महीने तक प्रतिबंधों को टालने की कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे। इसके बाद 28 सितंबर को ईरान पर 2015 के परमाणु समझौते (JCPOA) के तहत हटाए गए प्रतिबंध फिर से लागू हो गए। इन प्रतिबंधों में हथियारों का कारोबार, यूरेनियम संवर्धन और मिसाइल बनाने जैसी गतिविधियों पर रोक शामिल है।
- रॉयटर्स के मुताबिक, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी (E3) ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर उसकी तरफ से नियमों का पालन न करने की बात कही थी। इसके बाद उन्होंने 30 दिन की प्रक्रिया शुरू की, जिसके खत्म होते ही संयुक्त राष्ट्र के सारे प्रतिबंध फिर से लग गए। हालांकि, ईरान ने हमेशा कहा है कि वह परमाणु हथियार नहीं बनाना चाहता।
- जानकारों का मानना है कि इस कदम से पश्चिमी देशों को ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर नजर रखने और उसे काबू में रखने की रणनीति पर दोबारा सोचने की जरूरत होगी। अब IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) की जांच और यूरेनियम के भंडार के बारे में ज्यादा जानकारी जरूरी हो गई है।
- CNN के अनुसार, स्नैपबैक का मतलब है संयुक्त राष्ट्र के पहले के छह प्रस्तावों का अपने आप फिर से लागू हो जाना। ये प्रस्ताव हथियारों के आयात-निर्यात, लोगों के आने-जाने पर रोक और जहाजों की जांच जैसे क्षेत्रों में दुनिया भर में प्रतिबंध लगाते हैं। इससे ईरान की अर्थव्यवस्था और आसपास के देशों पर दबाव बढ़ना तय है।
- ईरान के राष्ट्रपति और विदेश मंत्रालय ने इन प्रतिबंधों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और कहा कि इससे कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। उन्होंने इसे गलत और राजनीतिक कदम बताया। रूस और चीन ने भी इसे बेकार बताया, लेकिन सुरक्षा परिषद के नियमों के चलते ये प्रतिबंध फिर से लागू हो गए। पश्चिम एशिया में पहले से ही अशांति है और यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया भर की राजनीति में भी बदलाव हो रहे हैं। ऐसे में इस फैसले का असर ऊर्जा बाजार, बीमा, जहाजों के कारोबार और क्षेत्रीय सुरक्षा पर पड़ सकता है।
पृष्ठभूमि:
2015 में JCPOA समझौता हुआ था, जिसमें ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर कुछ सीमाएं लगाई गई थीं। इसके बदले में ईरान पर लगे कुछ प्रतिबंध हटा दिए गए थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में ईरान के नियमों का पालन न करने, अमेरिकी नीतियों में बदलाव और क्षेत्रीय तनावों की वजह से ये समझौता कमजोर हो गया। अब स्नैपबैक ने इसे और मुश्किल में डाल दिया है।
आगे की राह:
यूरोप की तरफ से एक प्रस्ताव है कि अगर ईरान IAEA की जांच में सहयोग करे और यूरेनियम संवर्धन को लेकर सही जानकारी दे, तो कुछ रास्ते खुल सकते हैं। अगर ऐसा नहीं होता है, तो कोई नया रास्ता खोजना होगा।
निष्कर्ष:
E3 और ईरान के बीच किसी समझौते की संभावना अब IAEA की जांच, यूरेनियम के भंडार की सही जानकारी और क्षेत्रीय तनाव को कम करने जैसे कदमों पर निर्भर करती है। ऊर्जा और सुरक्षा बाजार में अनिश्चितता बनी रहेगी, जब तक कोई नया समझौता नहीं हो जाता।
