ISRO और प्राइवेट स्पेस: नीतियाँ, स्टार्टअप्स और वैश्विक रुझान

अंतरिक्ष तकनीक अब सिर्फ विज्ञान तक सीमित नहीं है। ये संचार, नेविगेशन, आपदा प्रबंधन और डिजिटल अर्थव्यवस्था का ज़रूरी हिस्सा बन गई है। 2023 में दुनिया भर में अंतरिक्ष से जुड़ी अर्थव्यवस्था लगभग 570 अरब डॉलर तक पहुँच गई थी। भारत ने भी इसरो की सफलता के साथ प्राइवेट कंपनियों के लिए रास्ते खोल दिए हैं। इंडियन स्पेस पॉलिसी 2023 और 100% FDI जैसे बदलावों से भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। हमारा लक्ष्य है कि 2022 में 8.4 अरब डॉलर की रही भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को 2033 तक 44 अरब डॉलर तक ले जाया जाए। इसमें नए नियम, स्टार्टअप और दूसरे देशों के साथ सहयोग मदद करेंगे।

आजकल भारत ने 23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतारकर इतिहास रचा था। इसके अलावा, आदित्य-एल1 को L1 पॉइंट पर स्थापित करके अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी ताकत दिखाई। इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए ‘गगनयान’ मिशन की तैयारी भी ज़ोरों पर है, जिसके लिए 2023 में ज़रूरी टेस्ट शुरू हो गए। भारत ने 2023 में आर्टेमिस अकोर्ड्स पर साइन करके दुनिया भर के देशों के साथ मिलकर अंतरिक्ष में खोज करने के लिए हाथ मिलाया है। दुनिया में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का ज़्यादातर पैसा कमर्शियल कामों से आता है। Starlink जैसे बड़े प्रोजेक्ट, जिनमें 2025 तक 7,600–8,000 से ज़्यादा सैटेलाइट होंगे, इस उद्योग को नई दिशा दे रहे हैं।

इसरो के PSLV और LVM3 जैसे लॉन्च व्हीकल वैज्ञानिक और कमर्शियल मिशन के लिए बहुत ज़रूरी हैं। चंद्रयान-3 को LVM3 से ही लॉन्च किया गया था, जबकि PSLV ने आदित्य-एल1 को उसकी कक्षा में स्थापित किया। प्राइवेट लॉन्च सिस्टम में Skyroot का Vikram-1 (जिसके कई टेस्ट हो चुके हैं और 2025 तक लॉन्च के लिए तैयार है) और Agnikul का 30 मई 2024 का Agnibaan SOrTeD (जिसमें 3D-प्रिंटेड इंजन है) नई तकनीक दिखा रहे हैं। NavIC 7 सैटेलाइट से भारत और उसके 1500 किमी तक के इलाके में सही लोकेशन और टाइम की जानकारी मिलती है। इसके अलावा, Pixxel जैसे स्टार्टअप हाइपरस्पेक्ट्रल डेटा से पर्यावरण, फसल और प्रदूषण की निगरानी को और भी बेहतर बना रहे हैं।

इन सब चीज़ों से समाज को कई फायदे हैं। मौसम का सही अनुमान, आपदा प्रबंधन, मैपिंग और गाड़ियों की निगरानी जैसे काम आसान हो जाते हैं। NavIC जैसी सेवाओं और सरकारी प्लेटफॉर्म के साथ जुड़ने से लोगों के जीवन पर सीधा असर पड़ता है। सैटेलाइट ब्रॉडबैंड और नेविगेशन से जुड़ी सेवाएं गांवों और दूरदराज़ के इलाकों में डिजिटल सेवाएं, ई-गवर्नेंस और फिनटेक को बढ़ावा देती हैं, जिससे इनका बाज़ार लगातार बढ़ रहा है। FDI और स्टार्टअप-फ्रेंडली नीतियों की वजह से भारतीय स्पेस स्टार्टअप में निवेश बढ़ रहा है, जिससे नई नौकरियां और सप्लाई चेन बन रही हैं।

कक्षा में ज़्यादा भीड़ और अंतरिक्ष में कचरा बड़ी चिंताएं हैं। बहुत ज़्यादा सैटेलाइट होने से टकराव का खतरा बढ़ गया है, इसलिए ट्रैफिक मैनेजमेंट और सैटेलाइट को हटाने के सख्त नियम ज़रूरी हैं। हाई-रेज़ोल्यूशन और PNT सेवाओं से डेटा की सुरक्षा का खतरा भी बढ़ गया है, इसलिए साइबर सुरक्षा, एन्क्रिप्शन और नियमों का पालन करना ज़रूरी है। स्पेक्ट्रम, लाइसेंस, एक्सपोर्ट और बीमा जैसे मामलों में नियम साफ होने चाहिए, ताकि प्राइवेट निवेश सुरक्षित रहे।

इंडियन स्पेस पॉलिसी 2023 में ISRO को रिसर्च पर ध्यान देने और IN-SPACe/NSIL को प्राइवेट कंपनियों को बढ़ावा देने का काम दिया गया है। 2024 में FDI के नियमों में बदलाव करके सैटेलाइट, लॉन्च व्हीकल और उनके पार्ट्स बनाने में 100% तक निवेश की अनुमति दे दी गई है, जिससे दुनिया भर से पैसा और तकनीक भारत में आ रही है। Skyroot, Agnikul, Pixxel जैसे स्टार्टअप और NSIL मिलकर 2033 तक 44 अरब डॉलर का लक्ष्य पूरा करने में मदद कर रहे हैं।

दुनिया भर में स्पेस इकोनॉमी में कमर्शियल कामों का हिस्सा 2023 में 445 अरब डॉलर से ज़्यादा रहा, जबकि लॉन्च की संख्या और सैटेलाइट का निर्माण तेज़ी से बढ़ा है। SpaceX का Starlink 2025 में 7,600–8,000 से ज़्यादा सैटेलाइट के साथ LEO कनेक्टिविटी का नया स्टैंडर्ड बना रहा है, जिससे भारत जैसे देशों में सैटेलाइट इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ रहा है। भारत का आर्टेमिस अकोर्ड्स से जुड़ना दुनिया के साथ मिलकर अंतरिक्ष में खोज करने और नए स्टैंडर्ड बनाने में मदद करेगा।

भारत की रणनीति साफ है: इसरो की मज़बूत तकनीक, प्राइवेट सेक्टर का विकास और अच्छे नियमों के साथ डाउनस्ट्रीम सेवाओं में दुनिया भर में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना। 100% FDI और सिंगल-विंडो ऑथराइजेशन जैसे कदमों से निवेश, लोग और सप्लाई चेन जुड़ेंगे, जिससे भारतीय कंपनियां EO एनालिटिक्स, SATCOM, PNT जैसे सेक्टर्स में आगे बढ़ेंगी। कचरा प्रबंधन, साइबर सुरक्षा और डेटा पॉलिसी पर ध्यान देने से भारत की विश्वसनीयता और एक्सपोर्ट करने की क्षमता और बढ़ेगी।

इसरो की सफलता और प्राइवेट कंपनियों के इनोवेशन से भारत स्पेस इकोनॉमी में आगे बढ़ने के लिए तैयार है। अच्छे नियम, FDI और दुनिया के देशों के साथ सहयोग से 2033 तक 44 अरब डॉलर का लक्ष्य पूरा हो सकता है, लेकिन इसके लिए सुरक्षा, कचरा प्रबंधन और कौशल विकास पर ध्यान देना ज़रूरी है।

Raviopedia

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