मिट्टी का कटाव और मिट्टी का संरक्षण: कारण, प्रभाव, नीतियाँ, समाधान, अध्ययन और भविष्य की दिशा

मिट्टी धरती के लिए ज़रूरी है, जैसे कि खाना, साफ़ पानी, पेड़-पौधे और गाँव-शहर सब मिट्टी से ही जुड़े हैं। लेकिन आजकल मिट्टी बहुत तेज़ी से ख़राब हो रही है। दुनिया में हर साल लगभग 24 अरब टन अच्छी मिट्टी बह जाती है। इसका मतलब है कि धरती की लगभग एक-तिहाई मिट्टी किसी न किसी तरह से ख़राब हो चुकी है। भारत में भी लगभग 30% ज़मीन मिट्टी के कटाव और रेगिस्तान बनने की वजह से बेकार हो गई है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हवा और पानी मिट्टी को बहा ले जाते हैं। इससे सिर्फ़ पर्यावरण को ही नहीं, बल्कि खाने की पैदावार, लोगों की कमाई, सेहत और पानी की सुरक्षा पर भी असर पड़ रहा है। इस लेख में हम मिट्टी के कटाव का मतलब, इसके कारण, असर, सरकार की नीतियाँ, उपाय, अच्छे काम और भविष्य में क्या करना चाहिए, इन सब बातों को विस्तार से समझेंगे।

परिभाषा और विचार

मिट्टी का कटाव एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी की सबसे ऊपरी परत, जो कि उपजाऊ होती है, हवा, पानी या इंसानी हरकतों की वजह से उड़ जाती है या बह जाती है। इस परत में ज़रूरी चीजें होती हैं जैसे कि कार्बनिक पदार्थ, पोषक तत्व और छोटे-छोटे जीव। इनके हटने से ज़मीन की पैदावार कम हो जाती है। मिट्टी का कटाव पर्यावरण से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इससे पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है, नदियों और झीलों में मिट्टी जमा हो जाती है, बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है, धूल का प्रदूषण बढ़ जाता है और कार्बन का चक्र बिगड़ जाता है।

कारण

  • पेड़ों की कटाई और ज़मीन का ख़राब होना: जब पेड़ और झाड़ियाँ कट जाती हैं, तो बारिश की बूँदें सीधे मिट्टी पर गिरती हैं और उसे बहा ले जाती हैं। अमेज़न के जंगलों में पेड़ों की कटाई से न सिर्फ़ पेड़-पौधे और जीव-जंतु कम हो रहे हैं, बल्कि मिट्टी का कटाव भी बढ़ रहा है और नदियों में मिट्टी जमा हो रही है।
  • ग़लत तरीके से खेती: जब ढलान वाली ज़मीन पर ऊपर-नीचे जुताई की जाती है, खेतों को खाली छोड़ दिया जाता है, फसलें बदल-बदल कर नहीं बोई जातीं और ज़मीन को ढकने वाली फसलें नहीं लगाई जातीं, तो मिट्टी कमज़ोर हो जाती है। अमेरिका में डस्ट बाउल के समय में देखा गया कि कैसे ज़्यादा जुताई और सूखे ने मिलकर हवा से मिट्टी का भारी कटाव किया।
  • ज्यादा पशु चराई: जब जानवर ज़्यादा चरते हैं, तो घास और झाड़ियाँ दोबारा नहीं उग पातीं, जिससे मिट्टी खुली रह जाती है। यह पश्चिमी भारत और अफ्रीका के सूखे इलाकों में एक बड़ी समस्या है।
  • निर्माण, खनन और बिना योजना के घर बनाना: जब इमारतें बनती हैं और खनन होता है, तो खुली ढलानों से मिट्टी का भारी कटाव होता है। शहरों के बढ़ने से अच्छी मिट्टी हट जाती है और मिट्टी के कण आस-पास के पानी के स्रोतों में जमा हो जाते हैं।
  • मौसम में बदलाव: तेज़ बारिश, लंबे सूखे और तेज़ हवाएँ मिट्टी को कमज़ोर कर देती हैं। हिमालय के पहाड़ों में तेज़ बारिश और बर्फ़ पिघलने से मिट्टी का कटाव बढ़ रहा है।
  • नदी के किनारों का गलत इस्तेमाल: जब नदी के किनारे असुरक्षित होते हैं, रेत निकाली जाती है और किनारों पर पेड़-पौधे नहीं होते, तो नदी के किनारे कटने लगते हैं। गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के आसपास के इलाकों में यह एक गंभीर समस्या है।
  • फसल के अवशेषों को जलाना: जब पराली जलाई जाती है, तो मिट्टी की बनावट और उसमें मौजूद कार्बनिक पदार्थ कम हो जाते हैं। इससे मिट्टी कमज़ोर हो जाती है और हवा या पानी से आसानी से कट जाती है।

असर

  • पर्यावरण पर असर: मिट्टी के कटाव से ज़मीन की पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है और सूखे से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है। नदियों और जलाशयों में मिट्टी जमा होने से बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है और पानी में रहने वाले जीव-जंतुओं पर बुरा असर पड़ता है। दिल्ली-एनसीआर में गर्मियों में धूल भरी आँधियों में उड़ने वाली धूल पश्चिमी सूखे इलाकों से आती है और हवा में PM10 का स्तर बढ़ा देती है।
  • सामाजिक और आर्थिक असर: मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होने से पैदावार की लागत बढ़ जाती है, उपज कम हो जाती है और किसानों की कमाई पर दबाव आता है। गाँवों में लोगों की रोज़ी-रोटी खतरे में पड़ जाती है, लोग शहर जाने को मजबूर हो जाते हैं और कर्ज़ लेने की नौबत आ जाती है। सिंचाई के साधनों में मिट्टी जमा होने से उन्हें ठीक कराने का खर्चा बढ़ जाता है।
  • भोजन और पोषण पर असर: मिट्टी में कार्बन और पोषक तत्वों की कमी से फसलों की गुणवत्ता और पैदावार पर असर पड़ता है। इससे देश में भोजन की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
  • सेहत पर असर: धूल से सांस की बीमारियाँ बढ़ जाती हैं और पानी में गंदगी से जलजनित रोगों का खतरा बढ़ जाता है। खुले निर्माण और खनन क्षेत्रों की धूल से आसपास के लोगों को फेफड़ों की समस्याएँ हो सकती हैं।
  • मौसम पर असर: मिट्टी में कार्बन का बड़ा भंडार होता है। मिट्टी के कटाव और कार्बनिक पदार्थों की कमी से कार्बन हवा में मिल जाता है, जिससे मौसम में बदलाव होता है।

उदाहरण

अमेज़न में पेड़ों की कटाई से नदियों में मिट्टी जमा हो गई। चीन के लोएस पठार में पहले बहुत ज़्यादा मिट्टी येलो रिवर में पहुँचती थी, जिससे बाढ़ का खतरा था। लेकिन बाद में बड़े पैमाने पर संरक्षण उपायों से इसे ठीक किया गया। हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने और तेज़ बारिश ने भूस्खलन से मिट्टी का कटाव बढ़ाया। खुदाई और सड़क चौड़ीकरण ने कई ढलानों को कमज़ोर बना दिया।

सरकार और नीतियाँ

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: यह एक कानून है जिसके तहत प्रदूषण को रोकने, पर्यावरण पर असर का आकलन करने और पर्यावरण के लिहाज़ से संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा करने के नियम हैं। निर्माण और खनन परियोजनाओं में मिट्टी को बचाने की योजनाएँ ज़रूरी हैं।
  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980: यह कानून जंगलों को बचाने और नए पेड़ लगाने के बारे में है। वन आवरण कटाव को रोकता है।
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (NMSA): इसका लक्ष्य है खेती को बेहतर बनाना और मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों को बढ़ाना।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): यह योजना पानी को बचाने और सिंचाई को बेहतर बनाने के बारे में है। इससे मिट्टी का कटाव कम होता है।
  • मनरेगा: यह योजना गाँवों में लोगों को काम देती है ताकि वे पानी बचाने वाली संरचनाएँ बना सकें, पेड़ लगा सकें और चरागाहों का विकास कर सकें। इससे मिट्टी का कटाव कम होता है।
  • राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT): यह संस्था अवैध रेत खनन, निर्माण से होने वाली धूल और नदी के किनारों के कटाव को रोकने के लिए काम करती है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर:

संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (UNCCD) और SDG 15.3 के तहत भूमि क्षरण को रोकने का लक्ष्य है। भारत ने 2019 में UNCCD COP14 की मेजबानी करते हुए 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर खराब भूमि को बहाल करने का संकल्प लिया था।

पेरिस समझौते में भूमि आधारित कार्बन सिंक को मजबूत करने पर जोर दिया गया है। भूमि उपयोग, भूमि उपयोग परिवर्तन और वानिकी (LULUCF) से मिट्टी में कार्बन बढ़ता है, जिससे जलवायु और मिट्टी दोनों को फायदा होता है।

समाधान

तकनीकी उपाय:

  • कंटूर बंडिंग और टेरसिंग: ढलानों पर पानी के बहाव को रोककर मिट्टी को बचाते हैं और पानी को ज़मीन में सोखने में मदद करते हैं।
  • चेकडैम: यह छोटे-छोटे बाँध होते हैं जो तलछट को रोकते हैं और भूजल को रिचार्ज करते हैं।
  • घास-बरम: घास लगाकर ढलानों और नदी के किनारों को स्थिर किया जाता है।
  • विंडब्रेक: पेड़ों की कतारें लगाकर हवा से होने वाले कटाव को कम किया जाता है।

खेती से जुड़े उपाय:

  • संरक्षण-कृषि: कम जुताई, फ़सल अवशेषों का संरक्षण और फ़सल विविधीकरण से मिट्टी का ढाँचा सुधरता है।
  • आवरण फसलें: ज़मीन को ढकने वाली फसलें लगाकर मिट्टी को सुरक्षित रखा जाता है, नाइट्रोजन को बढ़ाया जाता है और कार्बन बढ़ाया जाता है।
  • समोच्च पर बुवाई: ढलानों पर बहाव को धीमा करते हैं और मिट्टी को थामते हैं।
  • समन्वित पोषक तत्त्व प्रबंधन: खाद से मिट्टी की स्थिरता और जल धारण क्षमता बढ़ती है।

भूमि उपयोग और सामुदायिक उपाय:

  • माइक्रो-वाटरशेड योजना: ज़मीन के इस्तेमाल की योजना बनाना और समुदाय को शामिल करना।
  • चरागाह की बहाली: चराई को नियंत्रित करना और घास लगाना।
  • नदी के किनारे बफर ज़ोन: पेड़ लगाकर कटाव को रोकना।

शहरी उपाय:

  • निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण: निर्माण स्थलों को ढकना और पानी का छिड़काव करना।
  • वर्षा जल प्रबंधन: बारिश के पानी को इकट्ठा करना और उसका इस्तेमाल करना।
  • लैंडफिल मैनेजमेंट: मिट्टी प्रदूषण को कम करना।

नीतियाँ और प्रबंधन:

  • परिणाम आधारित फंडिंग: वाटरशेड परियोजनाओं में अच्छे प्रदर्शन के लिए पैसे देना।
  • भूमि अभिलेख: ज़मीन के रिकॉर्ड रखना और उसका सही इस्तेमाल करना।
  • किसान प्रशिक्षण: किसानों को मिट्टी के बारे में जानकारी देना।

व्यक्तिगत स्तर पर:

  • वृक्षारोपण: पेड़ लगाना।
  • कम्पोस्ट बनाना: खाद बनाना।

सफल पहल और केस स्टडी

  • सुखोमाजरी (हरियाणा): समुदाय आधारित जल संरक्षण से कटाव कम हुआ।
  • रालेगण सिद्धि और हिवरे बाज़ार (महाराष्ट्र): जल संरक्षण से भूमि की उर्वरता लौटी।
  • तरुण भारत संघ, अरवरी नदी (राजस्थान): मिट्टी और पानी के संरक्षण से सूखी नदी को पुनर्जीवित किया गया।
  • मनरेगा समर्थित कार्य, बुंदेलखंड: मिट्टी संरक्षण कार्यों से रनऑफ घटा और फसल-सीजन बढ़े।
  • चीन का लोएस पठार पुनर्वास: बड़े पैमाने पर टैरसिंग, पुनर्वनीकरण और भूमि-उपयोग परिवर्तन से तलछट-भार नदियों में उल्लेखनीय रूप से घटा और उत्पादकता बढ़ी।
  • अमेरिका का नो-टिल विस्तार: संरक्षण-कृषि तकनीकों से वायु-क्षरण और कार्बन उत्सर्जन घटे।
  • चिपको आंदोलन और हरित आवरण: हिमालयी ढलानों पर वनों के संरक्षण ने कटाव को रोका।
  • प्लास्टिक प्रतिबंध और स्वच्छता: प्लास्टिक पर प्रतिबंध से मिट्टी में कचरा कम हुआ है।

नवाचार और भविष्य की दिशा

  • डिजिटल संरक्षण: उपग्रह और ड्रोन से मिट्टी के कटाव का नक्शा बनाना।
  • मृदा कार्बन: जैविक खाद का उपयोग करना।
  • जल स्मार्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर: बारिश के पानी का प्रबंधन करना।
  • नीतिगत दिशा: भूमि क्षरण को रोकने के लिए सरकार को लक्ष्य तय करने चाहिए।
  • भविष्य की चुनौतियाँ: बदलते मौसम, शहरी विकास और रेत खनन।

निष्कर्ष

मिट्टी का कटाव एक गंभीर समस्या है, लेकिन सही नीतियों और सामुदायिक भागीदारी से इसे ठीक किया जा सकता है। हमें मिलकर काम करना होगा ताकि हमारी मिट्टी, पानी और भोजन सुरक्षित रहें।

Raviopedia

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