हमारी धरती का लगभग 31% हिस्सा वनों से ढका है। ये वन हमारे पर्यावरण के लिए बहुत ज़रूरी हैं, क्योंकि ये जलवायु को संतुलित रखते हैं, जैव विविधता को बनाए रखते हैं, जल चक्र को चलाते हैं, मिट्टी को बचाते हैं और लोगों की आजीविका का साधन बनते हैं। वनों का संरक्षण और वनीकरण सिर्फ़ पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह आर्थिक विकास, लोगों के स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय से भी जुड़ा हुआ है।
पूरी दुनिया में 1990 के बाद से बहुत सारे वन नष्ट हो चुके हैं। 2015 से 2020 के बीच हर साल लगभग 10 मिलियन हेक्टेयर वन नष्ट हो गए। भारत में, कुल वन और वृक्षों का आवरण लगभग 24-25% है। भारत ने 2030 तक 2.5-3.0 बिलियन टन CO2 के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाने का लक्ष्य रखा है। इस लेख में हम बात करेंगे कि वन क्यों नष्ट हो रहे हैं, इसके क्या परिणाम हैं, कौन सी नीतियाँ कारगर हैं और हम क्या समाधान और नए तरीके अपना सकते हैं।
परिभाषा और अवधारणा
वनों के संरक्षण का मतलब है कि हम वनों, वन्यजीवों और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की रक्षा करें, उनका सही तरीके से प्रबंधन करें और अवैध गतिविधियों को रोकें। वनीकरण का मतलब है कि हम गैर-वन भूमि पर योजना बनाकर पेड़ लगाएं। पुनर्वनीकरण का मतलब है कि हम पहले से कटे या क्षतिग्रस्त वन क्षेत्र को फिर से ठीक करें।
वनों का पर्यावरण से सीधा संबंध है। वे कार्बन को सोखते हैं, ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं, बारिश के पैटर्न को बनाए रखते हैं, बाढ़ को कम करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं, परागण में मदद करते हैं और जैव विविधता को बचाते हैं। सामाजिक और आर्थिक रूप से, ये वन लोगों की आजीविका का आधार बनते हैं, दवाएँ, ईंधन और निर्माण सामग्री प्रदान करते हैं और पारिस्थितिकी-पर्यटन को बढ़ावा देते हैं।
कृषि विस्तार और वृक्षावरण का रूपांतरण:
अधिक ज़मीन पर खेती करने और सोयाबीन और पाम ऑयल जैसी फ़सलों को उगाने के लिए वनों को काटा जा रहा है। अमेज़न और दक्षिण-पूर्व एशिया में ऐसा ज़्यादा हो रहा है। भारत में भी कुछ जगहों पर झूम खेती और गैर-कृषि उपयोगों के लिए वनों पर दबाव बढ़ रहा है।
बुनियादी ढाँचा और खनन:
सड़कें, बाँध, रेल लाइनें, ट्रांसमिशन लाइनें, खनन और उद्योग बनाने के लिए वन क्षेत्रों को काटा जा रहा है। इससे वन्यजीवों के रास्तों में बाधा आती है और मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ता है।
अवैध कटाई और ईंधन लकड़ी पर निर्भरता:
अवैध रूप से लकड़ियों का व्यापार और ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन के लिए लकड़ी पर निर्भरता वन विनाश को बढ़ाती है। जब तक प्रभावी कानून नहीं होंगे और स्वच्छ ऊर्जा आसानी से उपलब्ध नहीं होगी, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।
वनाग्नि और जलवायु परिवर्तन:
बढ़ते तापमान, सूखे और इंसानों की वजह से आग लगने की घटनाएँ और उनकी तीव्रता बढ़ रही है। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के जंगलों में लगी बड़ी आग और भारत के कुछ संरक्षित क्षेत्रों में बार-बार लगने वाली आग इसके उदाहरण हैं।
नीति और संस्थागत चुनौतियाँ:
भूमि रिकॉर्ड की समस्याएँ, अस्पष्ट अधिकार, कमजोर निगरानी और सामुदायिक भागीदारी की कमी से संरक्षण के प्रयास कमजोर पड़ते हैं। योजना बनाने में कमी भी समस्याएँ पैदा करती है।
पर्यावरणीय असर:
वन कार्बन सिंक होते हैं, जिसका मतलब है कि वे कार्बन डाइऑक्साइड को सोखते हैं। जब वनों को काटा जाता है, तो कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ता है और जैव विविधता कम होती है। जल चक्र बाधित होता है, जिससे बारिश की अनिश्चितता, सूखा-बाढ़ चक्र और नदियों-झीलों में गाद जमाव बढ़ता है। हिमालयी क्षेत्र में वनों के कटाव और तापमान में वृद्धि से ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं, जिससे जल सुरक्षा प्रभावित हो रही है।
सामाजिक और आर्थिक असर:
वनों पर निर्भर समुदायों की आजीविका, गैर-काष्ठ वन उत्पाद, औषधीय पौधे और पारंपरिक ज्ञान प्रभावित होते हैं। पर्यटन, कृषि उत्पादकता और आपदाओं से लड़ने की क्षमता कम होती है, जिससे आर्थिक नुकसान होता है।
स्वास्थ्य पर असर:
वायु गुणवत्ता खराब होती है, क्योंकि सूक्ष्म कण और ओज़ोन जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं। शहरी क्षेत्रों में हरियाली की कमी से हीट-आइलैंड प्रभाव बढ़ता है और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। शहरों में हरित पट्टियाँ तापमान और प्रदूषण दोनों को कम करने में मदद करती हैं।
केस स्टडी और उदाहरण
दिल्ली का प्रदूषण:
शहरी वनीकरण, घने हरित पट्टे और जैव-विविधता पार्क प्रदूषण और तापमान को कम करने में सहायक साबित हुए हैं। हरियाली बढ़ने से हीट-आइलैंड प्रभाव घटता है और धूल कम होती है।
अमेज़न रेनफॉरेस्ट:
2019-2022 के दौरान कटाई में वृद्धि एक बड़ी चिंता का कारण थी। 2023 में नीतिगत सख्ती से कटाई में कमी आई है, लेकिन अभी भी कई समस्याएँ मौजूद हैं।
ग्लेशियर पिघलना:
हिमालय, आल्प्स और एंडीज़ में ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। वनावरण और वॉटरशेड प्रबंधन जल संतुलन बनाए रखने में बहुत ज़रूरी हैं।
सरकार और नीतियाँ
भारत की प्रमुख नीतियाँ/कानून:
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986: यह कानून प्रदूषण को नियंत्रित करने और पर्यावरणीय मानकों को बनाए रखने के लिए बनाया गया है।
- वन (संरक्षण) अधिनियम 1980: यह कानून वन भूमि को गैर-वन उपयोग के लिए बदलने से रोकता है और प्रतिपूरक वनीकरण का प्रावधान करता है।
- भारतीय वन अधिनियम 1927: यह कानून वन प्रबंधन और अपराधों से संबंधित प्रावधानों को बताता है।
- जैव विविधता अधिनियम 2002: यह कानून जैव संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण और लाभों के बंटवारे को सुनिश्चित करता है।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वनाधिकार) अधिनियम 2006: यह कानून समुदाय-आधारित अधिकारों से संरक्षण को बढ़ावा देता है।
- CAMPA/प्रतिपूरक वनीकरण कोष अधिनियम 2016: यह कानून वन भूमि के बदले प्रतिपूरक वनीकरण और पुनर्स्थापन के लिए धन उपलब्ध कराता है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना और ग्रीन इंडिया मिशन: इसका लक्ष्य 5 मिलियन हेक्टेयर नए/सुधारे वन आवरण को बढ़ाना है।
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP): इसका उद्देश्य शहरों में हरित आवरण बढ़ाकर और प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करके वायु गुणवत्ता में सुधार करना है।
- नगर वन योजना: यह योजना शहरी जंगल विकसित करके शहरों की हरित क्षमता और पारिस्थितिकी सेवाओं को बढ़ाती है।
- नमामि गंगे/गंगा एक्शन प्लान: इसका उद्देश्य नदी तंत्र की पारिस्थितिकी को बहाल करना और तटीय वनीकरण के माध्यम से जल गुणवत्ता में सुधार करना है।
अंतरराष्ट्रीय समझौते
- पेरिस समझौता (2015) और NDCs: इसमें वनों को कार्बन सिंक के रूप में मजबूत करने की बात कही गई है।
- क्योटो प्रोटोकॉल और REDD+: इसका उद्देश्य वनों की कटाई और क्षरण से उत्सर्जन को कम करना और सतत प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
- COP शिखर सम्मेलन (जैसे COP26) और ग्लासगो लीडर्स’ डिक्लेरेशन: इसमें 2030 तक वनों की कटाई को रोकने पर वैश्विक सहमति बनी है।
- सतत विकास लक्ष्य (SDGs), विशेषकर SDG-15: यह स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र और वन संरक्षण को प्राथमिकता देता है।
समाधान
तकनीकी समाधान
- रिमोट सेंसिंग, उपग्रह और ड्रोन निगरानी: ये तकनीकें वनों में होने वाले परिवर्तनों, अवैध कटाई और आग की निगरानी करती हैं।
- GIS-आधारित परिदृश्य योजना: यह तकनीक वन्यजीव गलियारों, जलागम और सामाजिक-आर्थिक मानचित्रण के साथ निर्णय लेने में मदद करती है।
- उच्च-जीवितांश रोपण, देशी प्रजातियाँ और मिश्रित पौधशाला: ये तकनीकें दीर्घकालिक टिकाऊ वन संरचना बनाने में मदद करती हैं।
- मियावाकी शहरी वन, बायोइंजीनियरिंग और बायोचार: ये तकनीकें कम भूमि में तेज़ी से हरियाली लाने, ढलानों को स्थिर करने और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करती हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन और हरित भवन: ये तकनीकें जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके वन-परिस्थितिकी पर दबाव कम करती हैं।
- ट्रेसबिलिटी और सप्लाई-चेन मानक: ये तकनीकें पाम ऑयल, सोया, कोको और लकड़ी जैसे उत्पादों में डिफॉरेस्टेशन-फ्री प्रमाणन सुनिश्चित करती हैं।
सामाजिक समाधान
- संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) और सामुदायिक वन अधिकार: ये पहल स्थानीय समुदायों को निगरानी, आग-रोकथाम और गैर- timber वन उत्पाद मूल्य-वर्धन में शामिल करती हैं।
- शिक्षा और जागरूकता: स्कूल पाठ्यक्रम, मीडिया अभियान और नागरिक विज्ञान लोगों के व्यवहार में बदलाव लाते हैं।
- आजीविका विविधीकरण: स्वच्छ ऊर्जा, बेहतर चूल्हे, वैकल्पिक रोजगार और वैल्यू-चेन विकास से कटाई का दबाव कम होता है।
- सहभागितापूर्ण निगरानी: ग्राम वन समितियाँ, सोशल ऑडिट और ओपन डेटा से जवाबदेही बढ़ती है।
व्यक्तिगत स्तर पर कदम
- कागज़, लकड़ी और फर्नीचर के टिकाऊ/प्रमाणित विकल्प चुनें।
- एकल-उपयोग प्लास्टिक का उपयोग कम करें और पुनर्चक्रण को अपनाएँ।
- ऊर्जा दक्षता, सार्वजनिक परिवहन और साझा गतिशीलता से कार्बन फुटप्रिंट कम करें।
- स्थानीय देशी प्रजातियों का वृक्षारोपण करें और उनके संरक्षण के लिए समय दें।
- नागरिक रिपोर्टिंग ऐप/हेल्पलाइन से अवैध कटाई या आग की सूचना दें।
सफल पहल और केस स्टडी
भारत से उदाहरण
- चिपको आंदोलन: इस आंदोलन ने संरक्षण को जन-आधारित बनाया।
- स्वच्छ भारत अभियान: कचरा प्रबंधन और जन-जागरूकता से शहरी पर्यावरण में सुधार हुआ है।
- प्लास्टिक बैन (एकल-उपयोग): अपशिष्ट भार घटाकर वनों और नदियों पर दबाव कम हुआ है।
- तेलंगाना का हरित हरम: बड़े पैमाने पर पौधरोपण और शहरी/ग्रामीण हरित पट्टियों का विस्तार किया गया है।
- अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क, दिल्ली रिज संरक्षण: शहरी पारिस्थितिकी को बहाल करने और समुदाय की भागीदारी के सफल उदाहरण हैं।
- JFM और वनाधिकार: कई राज्यों में समुदाय-आधारित प्रबंधन से वन आवरण और आजीविका दोनों में सुधार हुआ है।
विश्व से उदाहरण
- जर्मनी की Renewable Energy Policy (Energiewende): स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण ने जीवाश्म ईंधन निर्भरता कम करके वनों पर दबाव कम किया है।
- स्वीडन का Waste-to-Energy मॉडल: लैंडफिल को कम करके ऊर्जा पुनर्प्राप्ति से शहरी पर्यावरण और संसाधन-दक्षता में सुधार हुआ है।
- कोस्टा रिका का पेमेंट फॉर इकोसिस्टम सर्विसेज: प्रोत्साहन-आधारित मॉडल से वन आवरण में वृद्धि हुई है।
- चीन का ग्रेट ग्रीन वॉल और अफ्रीका की ग्रेट ग्रीन वॉल पहल: मरुस्थलीकरण रोकने के लिए बड़े पैमाने पर हरित पट्टी का विकास किया जा रहा है।
नवाचार और भविष्य की दिशा
नई तकनीक और शोध
- AI-सक्षम MRV सिस्टम: वनों के मापन, रिपोर्टिंग और सत्यापन के लिए उपग्रह और मशीन लर्निंग का उपयोग किया जा रहा है।
- कार्बन कैप्चर, BECCS और बायोचार: कठिन-उत्सर्जन क्षेत्रों के लिए कार्बन को पकड़ने के समाधान तलाशे जा रहे हैं।
- हाइड्रोजन ऊर्जा और भंडारण: स्वच्छ औद्योगिक ऊर्जा के लिए हाइड्रोजन का उपयोग किया जा सकता है, जिससे भूमि उपयोग पर दबाव कम हो सकता है।
- स्मार्ट सिटीज़ में नेचर-बेस्ड सॉल्यूशंस: अर्बन फॉरेस्ट, पेरियाबिल पेवमेंट, ग्रीन-रूफ और रैन-गार्डन जैसे समाधानों का उपयोग किया जा रहा है।
- क्लोनल/माइक्रोप्रोपेगेशन नर्सरी और मिक्स्ड-स्पीशीज़ डिज़ाइन: उच्च जीवितांश और पारिस्थितिक लचीलापन के लिए नए तरीके अपनाए जा रहे हैं।
- ब्लॉकचेन-आधारित ट्रेसबिलिटी और कार्बन बाजार: पारदर्शिता के साथ PES और ऑफसेट्स को सुदृढ़ किया जा रहा है।
भविष्य की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
- जलवायु परिवर्तन, वनाग्नि और कीट-बीमारियाँ वन स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं।
- भूमि अधिकार, सीमा-रेखा निर्धारण और परिदृश्य स्तर पर समन्वित योजना ज़रूरी है।
- वित्त और क्रियान्वयन क्षमता: CAMPA, अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त और निजी क्षेत्र की भागीदारी का प्रभावी उपयोग ज़रूरी है।
- वैज्ञानिक निगरानी और नागरिक सहभागिता मिलकर टिकाऊ मॉडल बना सकती है।
- प्रकृति-आधारित समाधान और जैव विविधता क्रेडिट जैसे नए वित्तीय औज़ार संभावनाएँ खोलते हैं, लेकिन सामाजिक सुरक्षा और निष्पक्ष लाभ-साझेदारी सुनिश्चित करना ज़रूरी है।
निष्कर्ष
वनों का संरक्षण और वनीकरण जलवायु स्थिरता, जल-सुरक्षा, जैव विविधता और विकास के लिए बहुत ज़रूरी है। इसके लिए तकनीक, नीति, वित्त, बाज़ार और समुदाय को मिलकर काम करना होगा। भारत के पास कानून, संस्थाएँ, वित्तीय तंत्र और समुदाय-आधारित परंपराएँ हैं। अगर हम विज्ञान-आधारित योजना, पारदर्शी क्रियान्वयन और स्थानीय अधिकारों का सम्मान करें, तो हम लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। हमें देशी प्रजातियों का रोपण करना चाहिए, दीर्घकालिक संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए, वन कटाई से मुक्त आपूर्ति श्रृंखलाओं को अपनाना चाहिए, शहरी वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए और नागरिकों को इसमें शामिल करना चाहिए। व्यक्तिगत और सामूहिक जिम्मेदारी के साथ हम एक ऐसे वन-संपन्न भारत और विश्व की नींव रख सकते हैं जो आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित, हरित और लचीला हो।





