नालंदा: प्राचीन ज्ञान केंद्र का पुनर्जन्म | Nalanda's Revival

परिचय

बिहार में नालंदा सिर्फ एक पुराना विश्वविद्यालय नहीं है। यह एशिया में ज्ञान का प्रतीक था। इसने शिक्षा, सोच-विचार और दुनिया भर में विचारों के आदान-प्रदान को एक नई दिशा दी। 5वीं से 12वीं सदी तक यहाँ शिक्षा का बोलबाला था। चीन, कोरिया, तिब्बत और दक्षिण-पूर्व एशिया से लोग यहाँ ज्ञान लेने आते थे। लेकिन 13वीं सदी में यह शहर तबाह हो गया और इसकी चमक फीकी पड़ गई। 2016 में UNESCO ने इसे अपनी सूची में शामिल किया। 2024 में राजगीर में इसका नया कैंपस खुला। यह दिखाता है कि विनाश के बाद भी नालंदा फिर से उठ खड़ा हुआ है। यह बिहार की विरासत और भारत की ज्ञान परंपरा को फिर से स्थापित कर रहा है।

कहानी का मुख्य भाग

नालंदा की कहानी हमें दिखाती है कि कैसे ज्ञान की रोशनी फैली, फिर बुझ गई, और फिर 21वीं सदी में कैसे इसे दोबारा जलाया गया। यह बिहार की विरासत और भारत की सोच को नए तरीके से परिभाषित करता है।

विस्तार से

कैसे बना और कब तक रहा

इतिहासकारों और पुरानी चीज़ों के खोजकर्ताओं के अनुसार, नालंदा 5वीं सदी में गुप्त वंश के समय में बना था। कुमारगुप्त प्रथम ने इसे बनवाया था। फिर हर्षवर्धन और पाल वंश के राजाओं ने भी इसे आगे बढ़ाया। यह 13वीं सदी तक फलता-फूलता रहा। UNESCO के अनुसार, यहाँ 3री सदी ईसा पूर्व से लेकर 13वीं सदी तक की चीज़ें हैं। यह लगभग 23 हेक्टेयर में फैला हुआ है। यहाँ स्तूप, मंदिर, विहार और कला के नमूने हैं, जो बौद्ध धर्म और वास्तुकला के विकास की कहानी बताते हैं।

कैसा दिखता था

नालंदा विश्वविद्यालय की खुदाई में 11 विहार और 14 मंदिरों के अवशेष मिले हैं। ये उत्तर-दक्षिण दिशा में बने हुए थे, जो उस समय की शहरी योजना को दिखाते हैं। ब्रिटानिका के अनुसार, विहारों में कमरे और आँगन थे। सामने ईंटों के बड़े-बड़े स्तूप थे। यह उस समय की वास्तुकला का एक अच्छा उदाहरण है। यह बताता है कि कैसे बौद्ध धर्म एक संगठित धर्म और दर्शन के रूप में विकसित हुआ।

शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंध

नालंदा में बौद्ध धर्म के साथ-साथ व्याकरण, तर्क, भाषा और साहित्य भी पढ़ाया जाता था। यहाँ एशिया के अलग-अलग देशों से छात्र और विद्वान आते थे। 7वीं सदी में ह्वेनसांग और यीचिंग जैसे चीनी तीर्थयात्रियों ने यहाँ रहकर पढ़ाई की। उन्होंने अपनी यात्रा के बारे में लिखा, जिससे हमें नालंदा के बारे में बहुत कुछ पता चलता है। इसी वजह से नालंदा मध्यकालीन विश्व का शिक्षा का केंद्र बन गया था।

पुस्तकालय और ज्ञान का भंडार

नालंदा में एक बहुत बड़ा पुस्तकालय था, जिसे धर्मगंज कहते थे। इसके अलग-अलग भाग थे, जैसे रत्नसागर, रत्नरंजक और रत्नोदधि। इनमें ज्ञान को सहेज कर रखा जाता था। इन पुस्तकालयों में बौद्ध ग्रंथों के अलावा भाषा, तर्क, चिकित्सा और दर्शन से जुड़ी किताबें भी थीं। इसलिए नालंदा ज्ञान का केंद्र बन गया। इसे दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ छात्रों के रहने और खाने की व्यवस्था थी।

मुख्य कहानी:

हर्षवर्धन का साथ और विश्वविद्यालय का विकास

हर्षवर्धन, जो कन्नौज के राजा थे, उन्होंने नालंदा को बहुत समर्थन दिया। ह्वेनसांग उनके समय में यहाँ कई सालों तक रहे। उन्होंने यहाँ के विषयों, शिक्षा के तरीके और जीवनशैली के बारे में लिखा। इससे हमें उस समय के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है। पाल वंश के राजाओं ने भी इसे आगे बढ़ाया। नालंदा पत्थर और कांसे की मूर्तियां बनाने का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।

नियम, अनुशासन और बहस

ब्रिटानिका और UNESCO बताते हैं कि नालंदा में विहार, मंदिर, आँगन, स्तूप और रहने के लिए कमरे थे। यह एक महाविहार के रूप में विकसित हुआ था। यहाँ पढ़ाई के साथ-साथ बहस और चर्चा भी होती थी। ह्वेनसांग और यीचिंग जैसे यात्रियों ने इसके बारे में लिखा है। इससे पता चलता है कि नालंदा में शिक्षा सिर्फ अनुशासन नहीं था, बल्कि सवाल पूछने, संदेह करने और तर्क करने का भी एक तरीका था।

कहानी और इतिहास

कहा जाता है कि 12वीं सदी में बख्तियार खिलजी के हमले के बाद नालंदा तबाह हो गया। लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उस समय के फारसी लेखों में नालंदा का सीधा उल्लेख नहीं है। कुछ विद्वान इस कहानी पर फिर से विचार करने की बात करते हैं। हालांकि, यह सच है कि 13वीं सदी के आसपास बिहार में बौद्ध संस्थानों पर हमले हुए थे, जिससे उनका पतन हो गया। नालंदा का पतन सिर्फ एक दिन में नहीं हुआ था। इसके पीछे राजनीतिक अस्थिरता, समर्थन की कमी और हिंसक हमले जैसे कई कारण थे।

खुदाई, संरक्षण और विश्व मान्यता

20वीं सदी की खुदाई और सबूत

1915 से 1937 के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने नालंदा में खुदाई की। 1974-1982 के बीच इसे और मजबूत किया गया। इन खुदाईयों से नालंदा के बारे में बहुत कुछ पता चला। आज यह जगह कानून द्वारा संरक्षित है और इसकी देखभाल ASI करता है।

UNESCO विश्व धरोहर (2016)

2016 में नालंदा विश्वविद्यालय को UNESCO विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया। इसकी वास्तुकला, शिक्षा और संस्कृति को दुनिया भर में पहचान मिली। यह सिर्फ ईंट-पत्थर के अवशेष नहीं हैं, बल्कि यह उस ज्ञान और दर्शन की विरासत है जिसने एशिया में ज्ञान, खोज और दया की परंपराओं को मजबूत किया। UNESCO ने नालंदा की वास्तुकला और संरचना को शिक्षा के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत बताया है।

नया नालंदा

2024 का नया कैंपस: हरा-भरा, आधुनिक

राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय का नया कैंपस जून 2024 में खुला। यह भारत और EAS देशों के सहयोग से बना है। यह एक आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल परिसर है। इसमें 40 कक्षाएं, दो ऑडिटोरियम, 550 छात्रों के लिए छात्रावास, अंतरराष्ट्रीय केंद्र, 2,000 लोगों के बैठने के लिए एम्फीथिएटर और सौर ऊर्जा जैसी सुविधाएं हैं। यह भारत की शिक्षा विरासत और संस्कृति के आदान-प्रदान का प्रतीक है।

इतिहास से भविष्य तक

नालंदा का पुनर्जीवन हमें सिखाता है कि हमें सीखने की खुली भावना, पर्यावरण का सम्मान और वैश्विक सहयोग रखना चाहिए। यह हमें उस स्वर्णिम युग की ओर ले जाता है, जहाँ भारतीय शिक्षा को बेहतर बनाने और दुनिया पर ध्यान केंद्रित करने का संकल्प है। यह बिहार की विरासत को 21वीं सदी के अवसरों से जोड़ता है और ज्ञान को अर्थव्यवस्था का आधार बनाता है।

आज के दौर से जुड़ाव

नालंदा की कहानी आज भी महत्वपूर्ण है। यह हमें बताती है कि शिक्षा सिर्फ डिग्री नहीं है, बल्कि यह जिज्ञासा, बहस और दुनिया के बारे में जानने की भावना है। UNESCO की मान्यता और 2024 का नया कैंपस दिखाते हैं कि बिहार की विरासत अब विकास, तकनीक और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के माध्यम से नए अर्थ बना रही है। यह भारत की पहचान को मजबूत करता है और हमें जलवायु, स्वास्थ्य, असमानता और शांति जैसी समस्याओं का समाधान खोजने में मदद करता है।

विश्लेषण और निष्कर्ष

नालंदा के उत्कर्ष और विनाश से हमें यह सीख मिलती है कि शिक्षा संस्थान तभी चलते हैं जब उन्हें राजनीतिक समर्थन, सामाजिक सहमति और संस्कृति का सम्मान मिले। बख्तियार खिलजी की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हमें इतिहास को समझना चाहिए और आलोचनात्मक सोच विकसित करनी चाहिए। 2016 की UNESCO मान्यता और 2024 का नया कैंपस इस सोच का परिणाम हैं। नालंदा फिर से एक प्रयोगशाला बन सकता है, जहाँ खुली बहस, बहुभाषावाद, बहुसंस्कृतिवाद और पर्यावरण के साथ 21वीं सदी की शिक्षा को परिभाषित किया जा सकता है।

बिहार का इतिहास

नालंदा के माध्यम से हम बिहार के इतिहास को समझते हैं। यह मगध की प्राचीनता, बौद्ध धर्म और संस्कृति का मिश्रण है। यहाँ विरासत सिर्फ स्मारक नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक संपत्ति है। यह बिहार की विरासत को आज की आकांक्षाओं से जोड़ता है, ताकि शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और समानता को बढ़ावा दिया जा सके। नालंदा का पुनर्जीवन इसी दिशा में एक कदम है।

आज के दौर से जुड़ाव

नया नालंदा भारत और एशिया की साझेदारी, हरित परिसर और शिक्षा को बेहतर बनाने का एक उदाहरण है। यह जलवायु के अनुकूल, समावेशी और वैश्विक है। यही नालंदा की आधुनिक परिभाषा है। यह बिहार की विरासत के लिए नई ऊर्जा है, जहाँ इतिहास, संस्कृति और शिक्षा मिलकर ज्ञान को बढ़ावा देते हैं।

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