NASA और NOAA मिलकर IMAP और SWFO-L1 नाम के मिशन लॉन्च कर रहे हैं। ये मिशन अंतरिक्ष के मौसम को समझने और सूरज से निकलने वाले कणों की स्टडी करने में मदद करेंगे। वहीं, कैरदर्स जियोकोरोना वेधशाला धरती के चारों ओर हाइड्रोजन के एक घेरे की मैपिंग करेगी।
इन मिशनों से मिलने वाली जानकारी से सैटेलाइट, हवाई जहाज़, बिजली के ग्रिड और नेविगेशन सिस्टम को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी। इससे भारत समेत दुनिया भर के इंफ्रास्ट्रक्चर को फायदा होगा।
मुख्य खबर:
- NASA और NOAA ने हाल ही में बताया है कि वे अंतरिक्ष के मौसम पर नज़र रखने के लिए IMAP (Interstellar Mapping and Acceleration Probe) और SWFO-L1 (Space Weather Follow-On at L1) नाम के दो प्रोग्राम शुरू कर रहे हैं। इनका मकसद सूरज से निकलने वाले कणों, सौर हवाओं और इंटरस्टेलर बॉर्डर को समझना है। इससे धरती पर मौजूद सिस्टम पर सौर गतिविधियों के असर को बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा।
- IMAP का काम है हेलियोस्फेरिक बॉर्डर पर कणों की उत्पत्ति और उनके तेज़ी से बढ़ने की प्रक्रिया की बारीकी से मैपिंग करना। इससे सौर तूफान और कण-प्रवाह के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी और अंतरिक्ष के मौसम को लेकर बनाए जाने वाले मॉडलों की क्वालिटी सुधरेगी।
- SWFO-L1 को लग्रांजियन पॉइंट L1 पर लगाया जाएगा। यह लगातार सोलर विंड, CME (कोरोनल मास इजेक्शन) और सौर विकिरण का डेटा देगा। इससे ज़मीनी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए पहले से चेतावनी जारी करने की क्षमता बढ़ेगी। इससे सैटेलाइट के ऑपरेशन, हवाई जहाज़ों के रूट, GNSS की सटीकता और बिजली के ग्रिड को स्थिर रखने जैसे ज़रूरी मामलों में सही फैसले लेने में मदद मिलेगी।
- इसके साथ ही, कैरदर्स जियोकोरोना वेधशाला पृथ्वी के चारों ओर फैले हाइड्रोजन के घेरे, जिसे 'जियोकोरोना' कहते हैं, का अध्ययन करेगी। इससे सूरज और पृथ्वी के बीच होने वाली बातचीत, ऊपरी वायुमंडल के फिजिक्स और सैटेलाइट के घर्षण जैसी चीज़ों के बारे में ज़रूरी जानकारी मिल सकती है। इससे लो-अर्थ-ऑर्बिट मिशन की प्लानिंग करने में और ज़्यादा आसानी होगी।
- स्पेस वेदर की घटनाओं की तीव्रता और बार-बार होने की वजह सौर चक्र के साथ बदलती रहती है। आज के दौर में सैटेलाइट पर निर्भर कम्युनिकेशन, नेविगेशन, फाइनेंस और पावर सिस्टम बहुत ज़रूरी हो गए हैं, इसलिए इनसे जुड़े जोखिमों को मैनेज करना एक वैश्विक प्राथमिकता बन गई है। ये मिशन पॉलिसी बनाने वालों को सही जानकारी के साथ फैसले लेने में मदद करते हैं।
असर/विश्लेषण:
भारत जैसे देशों में, जहाँ अंतरिक्ष से जुड़ी अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, IMAP, SWFO और कैरदर्स से मिलने वाला डेटा पहले से चेतावनी जारी करने और जोखिम को कम करने के तरीकों (जैसे सैटेलाइट सेफ मोड, ट्रेजेक्टरी एडजस्टमेंट, ग्रिड लोड मैनेजमेंट) को सुधारने में काम आएगा। इससे इंश्योरेंस के मॉडल बनाने, आपदा से निपटने की प्लानिंग करने और ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर को सुरक्षित रखने में सीधा फायदा होगा।
आगे की योजना:
जैसे ही इन मिशनों से डेटा मिलना शुरू हो जाएगा, वैज्ञानिक समुदाय हाई-रिज़ॉल्यूशन मॉडल, मशीन-लर्निंग आधारित पूर्वानुमान और रियल-टाइम अलर्टिंग टूल्स बनाएगा। पॉलिसी के स्तर पर, स्पेस वेदर को 'क्रिटिकल रिस्क' कैटेगरी में शामिल किया जा सकता है और अलग-अलग विभागों के लिए SOPs को अपडेट किया जा सकता है।
