क्वांटम कंप्यूटिंग, यानी भविष्य की कंप्यूटिंग, एक ऐसी तकनीक है जो मुश्किल समस्याओं को हल करने के लिए क्वांटम फिजिक्स का इस्तेमाल करती है। ये नॉर्मल सुपर कंप्यूटर से भी तेज है। 2025 में IBM और गूगल जैसी कंपनियों ने इसमें काफी तरक्की की है, जिससे ये असल दुनिया में इस्तेमाल होने के करीब आ गई है। भारत ने भी नेशनल क्वांटम मिशन (NQM) के ज़रिए इस पर ध्यान दिया है और बजट और सपोर्ट देकर इसे आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
क्वांटम कंप्यूटिंग में क्यूबिट्स जैसे तरीके इस्तेमाल होते हैं, जिनसे दवा खोजने, डेटा सुरक्षित रखने और नए मटेरियल बनाने जैसे कामों को तेजी से किया जा सकता है। 2025 में IBM ने बताया कि वो गलतियों को ठीक करने वाले सिस्टम पर काम कर रहे हैं, और गूगल ने भी इस दिशा में काफी काम किया है। इससे लगता है कि अब ऐसे सिस्टम आने वाले हैं जो काम के भी होंगे और जिन्हें बढ़ाया भी जा सकेगा।
अभी क्या चल रहा है
- भारत: सरकार ने 6003.65 करोड़ रुपये के NQM के तहत चार सेंटर बनाए हैं, जो क्वांटम कंप्यूटिंग, कम्युनिकेशन, सेंसिंग और मटेरियल पर काम करेंगे। IISc बेंगलुरु में एक कंप्यूटर सेंटर भी बनाया गया है। DST ने रिसर्च और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोग्राम शुरू किए हैं, ताकि 20 से 1000 क्यूबिट वाले सिस्टम बनाए जा सकें।
- दुनिया: यूरोप का 1 अरब यूरो का क्वांटम फ्लैगशिप नए प्रोजेक्ट्स के साथ इंडस्ट्रियल इस्तेमाल की तरफ बढ़ रहा है, वहीं अमेरिका 2018 से NQI एक्ट के ज़रिए इसमें पैसा लगा रहा है। चीन की Origin Quantum ने चौथी पीढ़ी का क्वांटम कंट्रोल सिस्टम लॉन्च किया है, जो इसे बढ़ाने की दिशा में एक कदम है।
टेक्नोलॉजी
क्वांटम कंप्यूटर क्यूबिट्स का इस्तेमाल करते हैं, जो एक ही समय में कई स्टेट में रह सकते हैं और दूर रहकर भी आपस में जुड़े रह सकते हैं। इससे ये एक साथ कई कैलकुलेशन कर सकते हैं। अभी सुपरकंडक्टिंग, ट्रैप्ड आयन, न्यूट्रल एटम और फोटोनिक प्लेटफॉर्म पॉपुलर हैं। भारत में TIFR, IISER पुणे, RRI, IIT बॉम्बे और IISc जैसे संस्थान इन प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे हैं। 2025 में गूगल के विलो चिप ने एरर करेक्शन में अच्छा प्रदर्शन किया, वहीं IBM ने 2029 तक 200 लॉजिकल क्यूबिट्स वाले सिस्टम बनाने का प्लान बताया है।
फायदे
- समाज और हेल्थकेयर: दवा खोजने और नए मटेरियल बनाने में मदद मिल सकती है।
- बिजनेस और फाइनेंस: पैसे के मैनेजमेंट और सप्लाई चेन को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।
- शिक्षा: NQM शिक्षा और इंडस्ट्री को साथ लाएगा, जिससे नए आइडिया और स्टार्टअप्स को बढ़ावा मिलेगा।
मुश्किलें
- टेक्नोलॉजी: गलतियों को ठीक करने के लिए अभी बहुत काम करना बाकी है।
- साइबर सिक्योरिटी: क्वांटम कंप्यूटर से होने वाले हमलों से बचने के लिए नए तरीके खोजने होंगे।
- नियम: कुछ नियम और स्टैंडर्ड तय करने होंगे, ताकि सब कुछ ठीक से हो सके।
भारत में इसका भविष्य
भारत ने 3-5-8 साल में 20-50, 50-100 और 50-1000 क्यूबिट सिस्टम बनाने का प्लान बनाया है और स्टार्टअप्स को सपोर्ट करने के लिए प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। DST के मुताबिक, एक स्टार्टअप ने 25-क्यूबिट सुपरकंडक्टिंग क्वांटम प्रोसेसर बनाया है, वहीं QNu Labs, QpiAI, BosonQ Psi जैसे खिलाड़ी भी इसमें काम कर रहे हैं। TIFR, IISc, RRI, IISER, C-DAC और IITs जैसे संस्थान मिलकर हार्डवेयर और एरर करेक्शन पर काम कर रहे हैं।
दुनिया से तुलना
- अमेरिका: NQI एक्ट के तहत NSF/DOE/DoD मिलकर काम कर रहे हैं। IBM का लक्ष्य 2026 तक क्वांटम एडवांटेज और 2029 तक गलती ठीक करने वाला सिस्टम बनाना है।
- यूरोप: EU क्वांटम फ्लैगशिप रिसर्च से इंडस्ट्री तक पुल बना रहा है, जिसका लक्ष्य क्वांटम इंटरनेट बनाना है।
एक्सपर्ट्स की राय
IBM का कहना है कि वो ऐसे सिस्टम बना सकते हैं जो गलतियों को ठीक कर सकें और बड़े लेवल पर काम कर सकें। गूगल का दावा है कि उनके विलो चिप ने एरर करेक्शन में अच्छा प्रदर्शन किया है और वो अब ऐसे एल्गोरिदम बना रहे हैं जो असल दुनिया में काम आ सकें।
निष्कर्ष
क्वांटम कंप्यूटिंग तेजी से आगे बढ़ रही है। एक तरफ IBM/Google जैसी कंपनियां गलतियों को ठीक करने और इसे बढ़ाने पर काम कर रही हैं, तो दूसरी तरफ भारत का NQM टैलेंट और इन्फ्रास्ट्रक्चर को जोड़कर इसे आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। आने वाले सालों में क्वांटम सिक्योरिटी, हाइब्रिड सिस्टम और इंडस्ट्रियल टेस्ट इस तकनीक को समाज और इकोनॉमी के लिए बहुत जरूरी बना देंगे।


