बिहार के पूर्व राज्यपाल, जिन्होंने सामाजिक न्याय और संस्थागत मर्यादा का उदाहरण पेश किया
कानपुर देहात के छोटे से गाँव परौंख से निकलकर रामनाथ कोविंद ने वकालत, संसद, बिहार के राजभवन और फिर राष्ट्रपति भवन तक का सफर तय किया। उन्होंने हर जगह सामाजिक न्याय और संस्थागत सुधारों को महत्व दिया।
जीवन परिचय
रामनाथ कोविंद भारत के एक जाने-माने नेता और वकील थे। उन्होंने 2017 से 2022 तक भारत के 14वें राष्ट्रपति के रूप में देश की सेवा की। इससे पहले, 2015 से 2017 तक, वे बिहार के राज्यपाल भी रहे। वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से पहले ऐसे व्यक्ति थे जो राष्ट्रपति बने। इसके अलावा, वे दलित समुदाय से आने वाले दूसरे राष्ट्रपति थे। लोग उन्हें उनकी सादगी और संवैधानिक मूल्यों का पालन करने के लिए याद करते हैं।
जन्म और शुरुआती जीवन
रामनाथ कोविंद का जन्म 1 अक्टूबर 1945 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले के परौंख गाँव में हुआ था। उनका परिवार किसान था, और उनका जीवन साधारण था। उन्होंने कानपुर विश्वविद्यालय से वाणिज्य और कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की। बचपन में उन्हें पढ़ाई के लिए काफ़ी दूर पैदल जाना पड़ता था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
कैरियर की शुरुआत
1971 में वकालत शुरू करने के बाद, कोविंद ने दिल्ली उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार के वकील के रूप में काम किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड और स्टैंडिंग काउंसिल के रूप में 1993 तक अपनी सेवाएं दीं। 1977-78 में, उन्होंने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के सहायक के रूप में भी काम किया। इसके साथ ही, उन्होंने दिल्ली फ्री लीगल एड सोसायटी के माध्यम से गरीब और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता भी प्रदान की।
मुख्य उपलब्धियां और योगदान
1994 से 2006 तक, कोविंद राज्यसभा के सदस्य रहे। इस दौरान उन्होंने कानून-न्याय, सामाजिक न्याय-सशक्तिकरण और अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण जैसी समितियों में काम किया। उन्होंने राज्यसभा हाउस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भी अपनी जिम्मेदारी निभाई। 2015 में, जब वे बिहार के राज्यपाल बने, तो उन्होंने विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों और पदोन्नति में होने वाली गड़बड़ियों की जाँच के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन किया। उन्होंने कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और तकनीक का इस्तेमाल करने पर जोर दिया। 2017 में वे राष्ट्रपति बने। इससे पहले, 2002 में, वे संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुके थे। उनके कार्यकाल में, जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति पर 2019 के राष्ट्रपति के आदेश और नागरिकता संशोधन अधिनियम जैसे कई अहम कानूनी और राजनीतिक फैसले लिए गए, जिन्हें संवैधानिक मंजूरी मिली।
विवाद और चुनौतियां
जब कोविंद को बिहार का राज्यपाल बनाया गया, तो कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति जताई क्योंकि उनसे सलाह नहीं ली गई थी। हालांकि, राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, लोगों ने उनकी निष्पक्षता की काफ़ी तारीफ़ की। राष्ट्रपति के रूप में, अनुच्छेद 370 से जुड़े आदेशों और सीएए 2019 पर उनके हस्ताक्षर राजनीतिक बहस का विषय बन गए। इससे उनकी भूमिका को लेकर सवाल उठे कि क्या उन्होंने संवैधानिक रूप से निष्पक्ष रहकर काम किया या सिर्फ सरकार की सलाह का पालन किया।
समाज और देश पर प्रभाव
कोविंद का राष्ट्रपति बनना दलित समुदाय के प्रतिनिधित्व के लिए एक बड़ी बात थी। इससे लोकतांत्रिक संस्थाओं में सामाजिक समावेश को बढ़ावा मिला। बिहार में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में जो सुधार किए, उनसे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ी। इससे राजभवन को संस्थागत सुधार के एक मंच के रूप में देखा जाने लगा।
विरासत
भारत के पहले भाजपा से जुड़े राष्ट्रपति और दूसरे दलित राष्ट्रपति के रूप में, कोविंद की छवि एक ऐसे व्यक्ति की रही जो मर्यादित, मिलनसार और अनुशासित थे। उन्होंने संवैधानिक आचरण के लिए एक मिसाल कायम की, जिसका भविष्य में पालन किया जा सकता है। राष्ट्रपति पद से हटने के बाद भी, वे राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय रखते रहे। 2023 में, उन्हें एक राष्ट्र-एक चुनाव से संबंधित एक उच्च-स्तरीय समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इससे पता चलता है कि वे संवैधानिक सुधारों के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
निष्कर्ष
रामनाथ कोविंद की कहानी भारत की विविधता और लोकतंत्र का प्रतीक है। एक साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति ने कानून, संसद, राज्यपाल और राष्ट्रपति जैसे पदों पर रहकर देश की सेवा की। उन्होंने हमेशा विनम्रता और मर्यादा का पालन किया। बिहार से उनका जुड़ाव और राष्ट्रीय स्तर पर उनके फैसले भारतीय लोकतंत्र की चेतना में हमेशा याद रखे जाएंगे। उन्होंने शांति, सादगी और संस्थागत शुचिता के मूल्यों को बढ़ावा दिया।
मुख्य तथ्य
- जन्म: 1 अक्टूबर 1945, परौंख, कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश।
- शिक्षा: बी.कॉम और एलएलबी, कानपुर विश्वविद्यालय (डीएवी कॉलेज से संबद्ध)।
- कानूनी करियर: 1971 से वकील; दिल्ली उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार के वकील (1977-79); सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (1978) और स्टैंडिंग काउंसिल (1980-93)।
- राजनीतिक करियर: 1991 में भाजपा में शामिल हुए; राज्यसभा सदस्य, उत्तर प्रदेश (1994-2006)।
- बिहार के राज्यपाल: 2015-2017; विश्वविद्यालयों में पारदर्शिता और न्यायिक आयोग की स्थापना।
- राष्ट्रपति: भारत के 14वें राष्ट्रपति (2017-2022); भाजपा से आने वाले पहले, और दलित समुदाय से दूसरे राष्ट्रपति।
- प्रमुख संवैधानिक घटनाएं: जम्मू-कश्मीर पर 2019 के राष्ट्रपति आदेश; नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 पर स्वीकृति।
- अंतर्राष्ट्रीय: संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2002 में भाषण।
- शैक्षणिक प्रशासन: आईआईएम कोलकाता के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स और डॉ. बी.आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के बोर्ड ऑफ़ मैनेजमेंट के सदस्य।
- हालिया भूमिका: 2023 में “एक राष्ट्र-एक चुनाव” संबंधी समिति के अध्यक्ष।
विचार करने योग्य प्रश्न
- क्या कोविंद का राष्ट्रपति कार्यकाल भारत में दलित प्रतिनिधित्व को आगे बढ़ाने में मदद करता है, या यह सिर्फ एक दिखावा था?
- बिहार के राज्यपाल के रूप में विश्वविद्यालय सुधारों की उनकी कोशिशें शिक्षा में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने में कितनी सफल रहीं?
- संवैधानिक प्रमुख के रूप में सरकार की सलाह पर हस्ताक्षर करने की मजबूरी और विवादास्पद फैसलों के बीच निष्पक्षता कैसे बनाए रखी जानी चाहिए?

