रामविलास पासवान: बिहार की राजनीति के 'मौसम वैज्ञानिक', दलितों के मसीहा और गठबंधन युग के मजबूत स्तंभ

रामविलास पासवान, बिहार के एक ऐसे नेता थे जिनकी आवाज़ दलितों के लिए हमेशा बुलंद रही। वे लंबे समय तक केंद्र सरकार में मंत्री रहे और उन्हें गठबंधन की राजनीति का 'मौसम वैज्ञानिक' कहा जाता था, क्योंकि वे हवा का रुख भांपने में माहिर थे। भारतीय राजनीति में उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा। 1977 में हाजीपुर से उन्होंने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी। इसके अलावा, मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कराने और खाद्य सुरक्षा से जुड़ी नीतियों में भी उनकी अहम भूमिका रही, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक खास पहचान दी।
रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना की। वे नौ बार लोकसभा सांसद रहे और कई प्रधानमंत्रियों के साथ मंत्री के रूप में काम किया। हाजीपुर में उन्होंने एक ऐसी जीत दर्ज की, जो आज भी याद की जाती है। इसके अलावा, मंडल आयोग के दौर में बनी नीतियों और गरीबों को अनाज पहुंचाने की व्यवस्था में भी उनका बहुत बड़ा योगदान रहा।

परिचय

रामविलास पासवान (1946–2020) बिहार के एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने सात सरकारों में कैबिनेट मंत्री के तौर पर काम किया और गठबंधन की राजनीति को एक नई दिशा दी। उन्हें भारतीय राजनीति का 'मौसम वैज्ञानिक' कहा जाता था, क्योंकि उनमें यह समझने की गजब की क्षमता थी कि कब कौन सा मुद्दा उठाना है और किस तरह सत्ता में बने रहना है। उनकी इस कला ने उन्हें सबसे अलग बना दिया था।

जन्म और शुरुआती जीवन

रामविलास पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले के शाहर्बन्नी गांव में जमुन पासवान और सिया देवी के घर हुआ था। उन्होंने खगड़िया के कोशी कॉलेज और पटना विश्वविद्यालय से एमए और एलएलबी की पढ़ाई की। 1969 में उनका चयन बिहार पुलिस में डीएसपी के पद पर भी हुआ था। लेकिन, सामाजिक न्याय के प्रति उनकी सोच ने उन्हें छात्र जीवन से ही आंदोलनों और समाजवादी विचारधारा की तरफ खींच लिया।

राजनीतिक सफर की शुरुआत

1969 में रामविलास पासवान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार बिहार विधानसभा के लिए चुने गए। आपातकाल के दौरान उन्होंने जेल भी काटी। 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर हाजीपुर से उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की। 1977 में हाजीपुर से 4.24 लाख वोटों से मिली जीत उस समय गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हुई थी, जिससे उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। 1983 में उन्होंने दलित सेना का गठन किया और 2000 में जनता दल से अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) बनाई।

रामविलास पासवान की उपलब्धियां और योगदान

रामविलास पासवान ने श्रम, रेल, संचार, कोयला, रसायन और उर्वरक, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण जैसे कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली। उनके काम से रोजगार, बुनियादी ढांचे, उद्योग और खाद्य सुरक्षा पर सीधा असर पड़ा। वी.पी. सिंह की सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री के तौर पर उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कराने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिससे समाज और राजनीति पर गहरा असर पड़ा। उपभोक्ता मामले और खाद्य मंत्री के रूप में उन्होंने देश के सबसे बड़े खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को चलाया, जिसके जरिए करोड़ों लोगों को सस्ते दामों पर अनाज मुहैया कराया गया। उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें 2021 में मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

विवाद और चुनौतियां

2002 में गुजरात दंगों के बाद रामविलास पासवान ने एनडीए सरकार से मतभेद होने पर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसे उनके सिद्धांतों के प्रति उनकी निष्ठा और गठबंधन की राजनीति पर उनके प्रभाव के तौर पर देखा गया। कई लोग उन्हें अवसरवादी भी कहते थे, खासकर 2014 में लंबे समय बाद एनडीए में वापसी करने पर उनकी आलोचना हुई थी। लेकिन, उनके समर्थकों का मानना था कि उन्होंने जनहित और प्रभावी भागीदारी के लिए ऐसा किया था। 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव के बाद लोजपा के रुख ने सरकार बनाने में मुश्किलें खड़ी कर दीं और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया, जिसकी वजह से पासवान के राजनीतिक फैसलों पर काफी बहस हुई।

समाज और देश पर असर

रामविलास पासवान ने हमेशा मंडल आयोग के दौर में ओबीसी और दलितों को एक साथ लाने की बात की। उन्होंने इसे सामाजिक और राजनीतिक साझेदारी के तौर पर आगे बढ़ाया, जिससे उत्तर भारत की सत्ता संरचना और प्रतिनिधित्व में लंबे समय तक बदलाव देखने को मिला। दलितों को ताकत देने, खाद्य वितरण प्रणाली को मजबूत करने और उपभोक्ता अधिकारों को सुरक्षित करने से जुड़े उनके फैसलों का असर बिहार से लेकर पूरे देश में महसूस किया गया।

विरासत

रामविलास पासवान की छवि एक ऐसे जननेता की रही, जिन्होंने विचारों और सत्ता के बीच तालमेल बिठाकर सामाजिक न्याय की राजनीति को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनाया। हाजीपुर में उन्हें जो प्यार और समर्थन मिला, उन्होंने वहां से रिकॉर्ड जीत हासिल की और गठबंधन की राजनीति में हमेशा अहम भूमिका निभाई। उनकी यह विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सीख है।

निष्कर्ष

रामविलास पासवान को हमेशा इसलिए याद किया जाएगा क्योंकि उन्होंने मुश्किलों से लड़कर सत्ता तक का सफर तय किया। उन्होंने समाजवादी विचारों, दलितों के सम्मान और गठबंधन की राजनीति को एक साथ मिलाकर लोकतंत्र की ताकत को बढ़ाया। उनके जीवन से यह सीख मिलती है कि भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए और सही समय पर सही फैसला लेना चाहिए।

मुख्य बातें

  • जन्म: 5 जुलाई 1946, शाहर्बन्नी, खगड़िया (बिहार)
  • माता-पिता: जमुन पासवान, सिया देवी
  • शिक्षा: एमए (राजनीति शास्त्र), एलएलबी; कोशी कॉलेज, खगड़िया और पटना विश्वविद्यालय
  • राजनीतिक सफर की शुरुआत: 1969 में बिहार विधानसभा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी); आपातकाल में गिरफ्तारी
  • रिकॉर्ड जीत: 1977 हाजीपुर, लगभग 4.24 लाख मतों से
  • पार्टी: 2000 में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना
  • मंत्री पद: श्रम, रेल, संचार, कोयला, रसायन-उर्वरक, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण
  • मंडल आयोग में योगदान: वी.पी. सिंह सरकार में ओबीसी आरक्षण लागू कराने में अहम भूमिका
  • सम्मान: पद्म भूषण (मरणोपरांत), 2021
  • निधन: 8 अक्टूबर 2020, दिल्ली

चर्चा के लिए सवाल

  • क्या रामविलास पासवान की मंडल + गठबंधन की रणनीति आज के दौर में भी उतनी ही जरूरी है, या अब नए सामाजिक समीकरणों की जरूरत है?
  • हाजीपुर में रिकॉर्ड जीत से लेकर खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों को चलाने तक, रामविलास पासवान की लोकप्रियता और राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहुंच से आज के नेताओं को क्या सीख मिलती है?
  • 2002 में इस्तीफे और 2014 में वापसी जैसे फैसलों को सिद्धांत बनाम व्यावहारिकता के नजरिए से कैसे देखा जाना चाहिए?

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