नवरात्रि के पहले दिन बिहार के सीतामढ़ी से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायक मिथिलेश कुमार ने शहर के कई पूजा पंडालों में त्रिशूल और धार्मिक किताबें बांटीं. इसके बाद से ही इस मुद्दे पर धार्मिक और संवैधानिक बहस छिड़ गई है, और राजनीतिक गलियारों में भी सरगर्मी बढ़ गई है.
पहले भी हो चुका है विवाद
साल 2024 में भी इसी विधायक ने दुर्गा पूजा पंडालों में तलवारें बांटी थीं, जिस पर काफी बवाल हुआ था. अब एक बार फिर वही मामला ताज़ा हो गया है. हालांकि, सत्ताधारी दल इस मामले को 'शस्त्र-शास्त्र' की परंपरा बताकर बचाव कर रहे हैं.
विपक्ष का क्या कहना है?
विपक्ष ने इस कदम को भड़काऊ बताया है और कानून-व्यवस्था और सामाजिक सद्भाव पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि इस तरह के कामों से समाज में गलत संदेश जाता है और अशांति फैलने का खतरा रहता है.
विधायक का जवाब
विधायक मिथिलेश कुमार का कहना है कि यह धार्मिक परंपरा का हिस्सा है और इसे राजनीति से जोड़कर नहीं देखना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि वह 2025 के विधानसभा चुनाव में अपनी बात को और भी मजबूती से रखेंगे.
पहले क्या हुआ था?
विधायक मिथिलेश कुमार ने इस साल नवरात्रि की शुरुआत में पंडालों में त्रिशूल बांटे और दुर्गा सप्तशती जैसी धार्मिक पुस्तकें भेंट कीं. उन्होंने कहा कि वह ऐसा सनातन परंपरा की रक्षा के लिए कर रहे हैं.
साल 2024 में भी विधायक दुर्गा पूजा पंडालों में रामायण के साथ तलवारें बांटते हुए दिखाई दिए थे. उस समय भी बिहार में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस ने इसे भड़काऊ कदम बताया था, जबकि बीजेपी नेताओं ने 'शस्त्र और शास्त्र साथ-साथ' की बात कहकर इसे परंपरा से जोड़ा था.
किसने क्या कहा?
- एक रिपोर्ट के अनुसार, विधायक ने कहा कि सनातन की रक्षा 'शस्त्र और शास्त्र' से होती है और वह हर साल नवरात्रि पर अपने क्षेत्र के पंडालों में अस्त्र-शस्त्र और शास्त्र भेंट करते रहेंगे.
- एक न्यूज़ चैनल के मुताबिक, उन्होंने 'असुर प्रवृत्ति वाली पार्टी' का जिक्र करते हुए 2025 के विधानसभा चुनाव का भी जिक्र किया. यह भी सामने आया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं में शस्त्र बांटे गए.
- एक अखबार ने 2024 के मामले में उनके बचाव को छापा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि दुर्गा पूजा में शस्त्र पूजन परंपरा का हिस्सा है और इसमें राजनीति नहीं देखी जानी चाहिए.
- उस समय, बीजेपी के गिरिराज सिंह ने 'शास्त्र-शस्त्र साथ-साथ' का तर्क दिया था, जबकि जनता दल (यूनाइटेड) के नेताओं ने इस पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि 'प्रदर्शन ज़्यादा नहीं करना चाहिए'.
किसकी क्या प्रतिक्रिया रही?
- विपक्षी आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने 2024 में तलवार बांटने को गलत संदेश देने वाला और उकसावे की आशंका पैदा करने वाला बताया था. अब त्रिशूल बांटने के मामले में भी उनकी वही बात दोहराई जा रही है.
- कांग्रेस के नेता प्रेमचंद्र मिश्रा ने सवाल उठाया है कि इतनी बड़ी संख्या में हथियार जैसी दिखने वाली चीज़ें कहां से आ रही हैं. उन्होंने कहा कि सिर्फ धार्मिक ग्रंथ बांटना बेहतर विकल्प होता.
- बीजेपी के नेताओं ने इसे धार्मिक परंपरा और स्थानीय लोगों की मांग से जोड़कर कम करके दिखाने की कोशिश की. उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने भी कहा कि यह स्थानीय लोगों की मांग पर किया गया.
इसका क्या मतलब है?
त्रिशूल जैसे धार्मिक प्रतीकों को सार्वजनिक रूप से बांटना एक प्रतीकात्मक कदम है, जिसका असर आने वाले चुनावों पर पड़ सकता है. साल 2024 में तलवार बांटने के मामले ने भी बिहार की राजनीति में तीखी बहस छेड़ दी थी. इस बार विधायक ने खुले तौर पर 2025 के विधानसभा चुनाव का जिक्र किया है, जिससे पता चलता है कि धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के ज़रिए राजनीतिक संदेश देने की रणनीति आगे भी जारी रह सकती है.
विपक्ष का कहना है कि यह कदम भड़काऊ है और इससे गलत संदेश जाता है. उनका यह भी कहना है कि इससे कानून-व्यवस्था और सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है. वहीं, सत्ताधारी दल 'शस्त्र-शास्त्र' परंपरा का हवाला देकर इसे सांस्कृतिक आचरण बता रहे हैं.
आगे क्या होगा?
नवरात्रि के दौरान त्रिशूल बांटने से बिहार की राजनीति में नया मोड़ आ गया है. एक तरफ परंपरा और उकसावे के बीच बहस तेज़ हो गई है, तो दूसरी तरफ राजनीतिक संदेश भी साफ दिखाई दे रहे हैं. आने वाले दिनों में जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आएंगे, इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी और सामाजिक चर्चा दोनों ही तेज़ होने की उम्मीद है.
यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद आगे क्या रूप लेता है और इसका बिहार की राजनीति पर क्या असर पड़ता है.
