दशहरा 2025: विजयादशमी का महत्व, परंपरा, पर्यावरण और समाज पर असर

दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहते हैं, भारत का एक बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है। यह नवरात्र के दसवें दिन मनाया जाता है। इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है। दशहरा भारतीय समाज में धर्म, संस्कृति, कला, लोगों के साथ मिलकर रहने और पारिवारिक मूल्यों को बहुत महत्व देता है। इस समय, रामलीला, रावण दहन, दुर्गा पूजा, गरबा-डांडिया और शस्त्र पूजन जैसी कई तरह की परंपराएं एक साथ देखने को मिलती हैं। यह त्योहार लोगों को आपस में जोड़ता है और खुशियाँ लाता है।

इतिहास और शुरुआत

  • दशहरा कैसे शुरू हुआ, इसके बारे में कई धार्मिक ग्रंथ और लोक कथाएं हैं। पुराने समय में, इसे वीरता, धर्म और शक्ति की पूजा से जोड़ा जाता था।
  • रामायण के अनुसार, भगवान राम ने नवरात्र में देवी दुर्गा की पूजा की और फिर लंका पर हमला किया। दशमी के दिन, उन्होंने रावण को मारकर धर्म की स्थापना की। इसलिए, उत्तर भारत में रावण दहन की परंपरा है, जिसमें रावण के पुतले को जलाया जाता है।
  • देवी महात्म्य के अनुसार, देवी दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस को मारा था। विजयादशमी को देवी की जीत का दिन माना जाता है। बंगाल और पूर्वी भारत में, इस जीत को दुर्गा पूजा और दुर्गा विसर्जन के रूप में मनाया जाता है, जिसमें देवी दुर्गा की मूर्तियों की पूजा की जाती है और फिर उन्हें पानी में विसर्जित कर दिया जाता है।
  • महाभारत की एक कहानी के अनुसार, पांडवों ने अपने अज्ञातवास के बाद शमी के पेड़ से अपने हथियार वापस पाए और विजयादशमी के दिन उनकी पूजा की। इसी वजह से महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में आयुध/शस्त्र पूजन और शमी पूजा की परंपरा शुरू हुई।
  • मैसूर का ऐतिहासिक दशहरा विजयनगर साम्राज्य से प्रभावित है। छत्तीसगढ़ का बस्तर दशहरा 75 दिनों तक चलता है और इसे भारत का सबसे लंबा उत्सव माना जाता है।

कहानियां और मान्यताएं

दशहरा से जुड़ी कहानियां अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से बताई जाती हैं, लेकिन सभी का मतलब एक ही होता है: धर्म, साहस और अच्छे व्यवहार का महत्व।

  • राम-रावण युद्ध: रावण अहंकार और बुरे कामों का प्रतीक है, जबकि राम धर्म, मर्यादा और न्याय का। रावण दहन यह दिखाता है कि अहंकार का अंत हमेशा होता है।
  • महिषासुर मर्दिनी: देवी दुर्गा की महिषासुर पर जीत शक्ति, धैर्य और एकता का प्रतीक है। नवरात्र में कुमारी पूजन, अष्टमी/नवमी का भोग और विजयादशमी पर विसर्जन इसी कहानी से जुड़े हैं।
  • शमी पूजा और सीमोल्लंघन: शमी के पत्तों को सोना मानकर बांटना समृद्धि और प्यार का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन नई शुरुआत और नए काम करना शुभ होता है।
  • विद्यारंभम: केरल और दक्षिण भारत में विजयादशमी के दिन बच्चों को अक्षर लिखना सिखाया जाता है, जिससे शिक्षा के प्रति उनका सम्मान बढ़ता है।

मनाने का तरीका

दशहरा (विजयादशमी) को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, जो धर्म, कला, भोजन और लोगों के जीवन को एक साथ जोड़ते हैं।

  • रामलीला और रावण दहन: उत्तर भारत के शहरों और कस्बों में रामलीला कई हफ्तों तक चलती है। दशमी की शाम को बड़े मैदानों में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं। इस समारोह में आतिशबाजी, संगीत और नाटक होता है।
  • दुर्गा पूजा और विसर्जन: बंगाल, असम, ओडिशा और झारखंड में नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा की मूर्तियां पंडालों में स्थापित की जाती हैं। अष्टमी-नवमी पर संधि पूजा, कुमारी पूजन और दशमी पर दुर्गा विसर्जन के साथ सिंदूर खेला होता है, जिसमें महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं।
  • आयुध/शस्त्र पूजन: महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात के कई परिवारों में औजार, वाहन, मशीनें, किताबें और वाद्ययंत्रों की पूजा की जाती है। इसे आयुध/शस्त्र पूजन या सरस्वती पूजन भी कहा जाता है।
  • गरबा-डांडिया: गुजरात और पश्चिम भारत में नवरात्र की रातें गरबा-डांडिया से भरी होती हैं, जो विजयादशमी के साथ समाप्त होती हैं।
  • भोजन और प्रसाद: बंगाल में खिचड़ी, लाबरा, पायेश; गुजरात में फाफड़ा-जलेबी; उत्तर भारत में व्रत के बाद विशेष व्यंजन; महाराष्ट्र-कर्नाटक में पुरणपोली/ओबट्टू जैसे पकवान बनाए जाते हैं।
  • नई शुरुआत और शुभ काम: वाहन/घर/व्यवसाय खरीदना, शस्त्र-उपकरणों की पूजा करना, विद्यार्थियों का विद्यारंभ करना विजयादशमी पर शुभ माना जाता है।

क्षेत्रीय विविधताएं

भारत की संस्कृति में विविधता होने के कारण दशहरा को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।

  • उत्तर भारत: दिल्ली, वाराणसी, प्रयागराज, लखनऊ और जयपुर जैसे शहरों की रामलीला बहुत प्रसिद्ध है। रावण दहन एक बड़ा सार्वजनिक समारोह होता है।
  • पश्चिम बंगाल: दुर्गा पूजा पंडाल, कला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है। कोलकाता की पूजा को यूनेस्को ने सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दी है।
  • कर्नाटक (मैसूर दशहरा): अंबा विलोभनी जंबो सावरी, मैसूर पैलेस की शानदार रोशनी और परेड मुख्य आकर्षण होते हैं।
  • हिमाचल प्रदेश (कुल्लू दशहरा): यह उत्सव विजयादशमी से शुरू होकर कई दिनों तक चलता है, जिसमें सैकड़ों देवताओं की पालकी ढोल-नगाड़ों के साथ निकाली जाती है।
  • छत्तीसगढ़ (बस्तर दशहरा): देवी दंतेश्वरी के सम्मान में यह त्योहार जनजातीय परंपराओं पर आधारित है। इसमें रावण दहन नहीं होता है।
  • महाराष्ट्र: सीमोल्लंघन, शमी के पत्तों का आदान-प्रदान और सोना बांटना समृद्धि की कामना का प्रतीक है।
  • तमिलनाडु-आंध्र-तेलंगाना: नवदुर्गा के साथ गोलू/बोम्मलाई गोलु (मूर्तियों की सजावट), कुमारी पूजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। तेलंगाना में बथुकम्मा उत्सव नवरात्र के दौरान रंग-बिरंगे फूलों से मनाया जाता है।
  • केरल: विद्यारंभम में मंदिरों और गुरुकुलों में बच्चों को अक्षर लिखना सिखाया जाता है, जिससे शिक्षा के प्रति उनका सम्मान बढ़ता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

दशहरा भारतीय समाज में नैतिकता, लोगों के साथ मिलकर रहने और संस्कृति को व्यक्त करने का एक मंच है। यह सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि सामाजिक एकता और संस्कृति को बचाने का भी त्योहार है।

  • नैतिक शिक्षा: दशहरा हमें सिखाता है कि झूठ और अहंकार का अंत होता है, जबकि सच, साहस और दया हमेशा जीतते हैं। यह सीख परिवार और स्कूल दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
  • सामुदायिक एकजुटता: रामलीला मंडलियों, दुर्गा पूजा समितियों, गरबा आयोजनों और मोहल्ले के स्तर की तैयारियों से लोगों में एकता और सहयोग बढ़ता है।
  • लोककला और अर्थव्यवस्था: पंडाल बनाने, मूर्तियां बनाने, पोशाक, सजावट, प्रकाश व्यवस्था, मंच, भोजन और पर्यटन से कई लोगों को रोजगार मिलता है।
  • लैंगिक और शक्ति-विमर्श: दुर्गा पूजा महिलाओं की शक्ति का उत्सव है, जो समाज में शक्ति और सुरक्षा के महत्व को दर्शाता है।
  • शिक्षा और शिल्प: विद्यारंभम, शस्त्र-पूजन और औजारों का सम्मान श्रम और कौशल को बढ़ावा देता है।

आधुनिक समय में

समय के साथ दशहरा का तरीका बदल गया है, लेकिन इसका महत्व अभी भी वही है। आज का उत्सव परंपरा और आधुनिकता का एक अच्छा उदाहरण है।

  • डिजिटल और मीडिया: रामलीला की लाइव स्ट्रीमिंग, दुर्गा पूजा पंडालों का ऑनलाइन दर्शन, नए तरह के इंस्टॉलेशन और 3D शो नई पीढ़ी को इस त्योहार से जोड़ते हैं।
  • पर्यावरण के अनुकूल उत्सव: मिट्टी की मूर्तियां, प्राकृतिक रंग, कम धुएं वाली आतिशबाजी, कचरा प्रबंधन और प्लास्टिक का कम उपयोग जैसी चीजें बढ़ रही हैं।
  • सुरक्षा: भीड़ को नियंत्रित करना, आग से सुरक्षा, मेडिकल बूथ, आपदा प्रबंधन और सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था बड़े शहरों में जरूरी हो गई है।
  • समावेशन: बुजुर्गों, बच्चों और विकलांगों के लिए सुविधाएं, अलग लाइनें और सूचना डेस्क जैसी चीजें कई आयोजनों में देखने को मिलती हैं।
  • बाज़ार और ब्रांडिंग: पंडालों को स्पॉन्सर करना, थीम-आधारित सजावट और स्थानीय व्यवसायों के स्टॉल से उत्सव का व्यापारिक पहलू बढ़ गया है, लेकिन समुदाय और संस्कृति का ध्यान रखना भी जरूरी है।
  • स्वास्थ्य और पर्यावरण: हवा की गुणवत्ता, ध्वनि प्रदूषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उत्सव मनाना जरूरी है, जैसे कि बिजली से चलने वाली रोशनी, कम आतिशबाजी और सफाई अभियान।

मैसूर पैलेस पर लाखों बल्बों की रोशनी दशहरा की रातों में देखने लायक होती है। कोलकाता की दुर्गा पूजा में हर साल नए सामाजिक विषयों पर कला दिखाई जाती है। कुल्लू में दशहरा रावण दहन से नहीं, देवताओं के मिलन और शोभायात्राओं से प्रसिद्ध है।

निष्कर्ष

दशहरा (विजयादशमी) सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि भारतीय समाज की आत्मा का उत्सव है, जो परिवार, समुदाय और संस्कृति को एक साथ जोड़ता है। इसका संदेश बुराई पर अच्छाई की जीत आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना पहले था। समय के साथ उत्सव में आधुनिक तरीके, पर्यावरण के अनुकूल चीजें और सभी को शामिल करने की सोच शामिल हुई है। भविष्य में, जब हम पर्यावरण और समाज को ध्यान में रखते हुए दशहरा मनाएंगे, तो यह त्योहार सिर्फ परंपराओं का नहीं, बल्कि एक बेहतर समाज बनाने का संकल्प होगा।

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